क्या अर्थव्यवस्था पर रवीश कुमार के दो रवैये हैं? नहीं वायरल वीडियो बनावटी है
बूम को दो अलग-अलग प्राइम टाइम शो के पूरे एपिसोड मिले । एक 2013 का था और दूसरा एक सप्ताह पुराना था
फ़ेसबुक एवं ट्विटर पर एक वीडियो वायरल हो रहा है | इसमें एन.डी.टी.वी के वरिष्ठ पत्रकार और एंकर रवीश कुमार को यह कहते हुए देखा जा सकता है,“कहीं हम जरूरत से ज़्यादा, यह भी एक महत्त्वपूर्ण बात है, दुखी या रोंदू तो नहीं हो रहे हैं अर्थव्यवस्था को लेकर | क्योंकि दुनिया की जो तमाम अर्थव्यवस्थाएं हैं उनमें बहुत कम देश है जो पांच प्रतिशत की रफ़्तार से भी बढ़ रहे हैं |”
जैसे ही यह समाप्त होता है, स्प्लीट-स्क्रीन में वीडियो का दूसरा भाग चलना शुरू होता है । इस भाग में, कुमार को हाल की आर्थिक मंदी की आलोचना करते हुए देखा जा सकता है । “भारत की अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में नहीं है | इसे छिपाने की तमाम कोशिशों के बीच आज जीडीपी के आंकड़ों ने ज़ख़्म को बाहर ला दिया | पांच प्रतिशत की जीडीपी इस बात की पुष्टि करती है की भारत की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ चुकी है |”
और जैसे ही वीडियो क्लिप अपने अंत के करीब पहुँचता है, एक अलग क्लिप व्यंग्यपूर्ण अंत देने के लिए जोड़ा गया है | जिसमें उन्होंने कहा था, "बड़ी मुश्किल होती है, अपने वेल्यूज़ को बचाए रखना" |
कल से सोशल मीडिया पर इस क्लिप को तेजी से फैलाया जा रहा है।
आप नीचे फ़ेसबुक पोस्ट देख सकते हैं और इसके अर्काइव वर्शन तक यहां पहुंचा जा सकता है।
नीचे कुछ ट्विटर पोस्ट हैं । कई दक्षिणपंथी हैंडल भी इसे शेयर कर रहे हैं ।
अर्काइव वर्शन यहां देखें।
ऊपर दिए गए पोस्ट के आर्काइव्ड वर्शन तक यहां पहुंचें ।
इसी वीडियो क्लिप को फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री ने भी शेयर किया था । ट्वीट को नीचे देखा जा सकता है और आर्काइव्ड वर्शन के लिए यहां क्लिक करें।
बीजेपी के कपिल शर्मा ने भी इसे ट्वीट किया |
नेशन टीवी के कन्सल्टिंग एडिटर दीपक चौरसिया ने भी इसी भ्रामक वीडियो को ट्वीट किया है । उन्होंने रवीश कुमार पर कटाक्ष करते हुए, वीडियो के कैप्शन में लिखा है, “मेरे मित्र रवीश कुमार को रोमन मैंग्सेसे मिलने पर हार्दिक बधाई । दर्शकों द्वारा भेजा गया एक वीडियो आपके सम्मान में भेज रहा हूं।”
फ़ैक्ट चेक
पहली क्लिप
पहली क्लिप 27 फरवरी, 2013 को, यानी छह साल पहले आधिकारिक एनडीटीवी वेबसाइट पर अपलोड की गई थी । मूल वीडियो में, कुमार कई नेताओं, व्यापारियों और अर्थशास्त्रियों के बाइट्स के साथ स्टोरी शुरु करते है । मई 2014 में आगामी लोकसभा चुनाव से पहले देश की आर्थिक मंदी के बारे में वे सभी आलोचनात्मक हैं । यह शो संकट - सूखे, कम विदेशी निवेश, उच्च आयात और कम निर्यात - सभी क्षेत्रों में खराब प्रदर्शन पर केंद्रित था । एनडीटीवी इंडिया पर प्राइम टाइम के रूप में जाना जाने वाला कुमार का शो उस दिन दिखाया गया था, जिस दिन तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने संसद में आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2012-13 प्रस्तुत की थी ।
वास्तव में उन्होंने क्या कहा था?
राजनेताओं, अर्थशास्त्रियों, और व्यापारियों के बाइट्स समाप्त होने के बाद, कुमार ने अपनी सामान्य शैली में शो शुरू किया और कहा,“वर्तमान काल में देश की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है | भविष्य काल में ठीक होने का अनुमान है | भूतकाल से तुलना करने पर यानी जब भारत 8 या 9 प्रतिशत की दर से आगे जा रहा था अर्थव्यवस्था का हर सूचकांक धीमी गति के समाचार की तरह प्रतीत हो रहा है…”
यह वीडियो का शुरुआती खंड है । 3 मिनट के निशान से लेकर 7 वें मिनट के निशान तक, रवीश ने आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट और तत्कालीन सरकार द्वारा सुझाए गए उपायों का विश्लेषण किया था । कुमार ने राज्य सरकारों द्वारा मंदी के समाधान के लिए जो कदम उठाने की योजना बनाई गई थी उन पर भी चर्चा की थी |
यह पूरा एपिसोड यूपीए के आखिरी बजट से एक दिन पहले टेलीकास्ट किया गया था, जिसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव हुए थे ।
वीडियो के वायरल और भ्रामक हिस्से से पहले, उन्होंने कहा:“बजट तीन सौ पन्ने के सर्वे से बनेगा या सरकार बनाने के लिए जरूरी 272 की संख्या को ध्यान में रखकर।”
कुमार तब यह कहते हुए आगे बढ़े जो अब वीडियो में भ्रामक रूप से दर्शाया जा रहा है: “कहीं हम जरूरत से ज़्यादा, यह भी एक महत्त्वपूर्ण बात है, दुखी या रोंदू तो नहीं हो रहे हैं अर्थव्यवस्था को लेकर | क्योंकि दुनिया की जो तमाम अर्थव्यवस्थाएं हैं उनमें बहुत कम देश है जो पांच प्रतिशत की रफ़्तार से भी बढ़ रहे हैं | तो इस सब सवालों पर हम बात करेंगे आज प्राइम टाइम में…”
यह बहुत स्पष्ट है कि कुमार अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में एक टीवी बहस के लिए मंच तैयार कर रहे थे और उनका अंतिम विश्लेषण नहीं था । 45 मिनट के लंबे एपिसोड के दौरान, कुमार कांग्रेस के तत्कालीन प्रवक्ता संजय निरुपम की भी आलोचना कर रहे थे, जिन्होंने बहस में हिस्सा लिया था।
निरुपम और रवीश कुमार के बीच चर्चा के अंश नीचे दिए गए हैं:
रवीश: संजय हम आपसे जानना चाहते है की क्यों न हम माने इस दस्तावेज़ को की यह आपकी [यूपीए] सरकार की हर वित्तीय नीति का दस्तावेज़ है? चाहे कोई भी सेक्टर हो सिर्फ़ ग्लोबल संकट कहने तो काम नहीं चलेगा, सर ।
संजय निरुपम: रवीश, सबसे पहले, मैं यह बता दूँ की जो आर्थिक सर्वेक्षण की पुस्तिका या पुस्तक आपके हाथ में है वो कोई पालिसी स्टेटमेंट नहीं है | वो पूरे एक साल के आर्थिक गतिविधियों का लेखा जोखा होता है | उसमे जो सुझाव है काम से काम उसको नीति निर्देशक तत्व न माने | दूसरी बात यह सही है हमारा देश संकट में है आर्थिक संकट बढ़ा है | लेकिन जैसा की आपने अपने प्रारंभिक रिमार्क में कहां की क्या भारत की कहानी ख़त्म हो गयी है? कृपया करके ऐसा न सोचें | भारत की कहानी ख़त्म नहीं हुई है | भारत ने जैसे 2008 - 09 विशेषकर 2008 जब पूरी दुनिआ में मंडी थी तब लड़कर झगड़कर बहार निकल कर आया हमे पूरा विश्वास है की अब भी आएंगे | ...
रवीश: देखिए, आपने व्यापक परिथियों को ठीक समझाया, लेकिन मैं यह कह रहा हूं की इसकी ज़िम्मेदारी कोई लेगा के नहीं लेगा? 2004 के बाद से, एक स्थाई सरकार, गठबंधन की ही सही पर एक स्थाई सरकार चल रही है, अपने सब बताया पर अपनी कमियों के लिए क्या, आपका वित्तीय घाटा बढ़ा क्यों?...
बूम ने वायरल पोस्ट पर टिप्पणी के लिए रवीश कुमार से संपर्क किया । उन्होंने कहा और हम उसे क्वोट करते हैं, “जब भी मुझसे जुड़ा कोई मौका आता है आई टी सेल बदनाम करने का मटीरियल ले आता है। दुख होता है कि जानते हुए भी पत्रकार और लोग झाँसे में आ जाते हैं। एक और बार साबित होता है कि मेरे पीछे कितनी बड़ी शक्तियाँ लगी हैं । उन्हें आज शाम का कोई शो देख लेना चाहिए जो गोदी मीडिया पर आने वाला होगा। पत्रकारिता की शर्मनाक स्थिति पर बहुत कुछ मिल जाएगा |”
दूसरा वीडियो क्लिप
मूल वीडियो एक सप्ताह पहले 30 अगस्त, 2019 को अपलोड किया गया था । यह जीडीपी फिर से पांच प्रतिशत तक गिरने एवं एक और अपेक्षित मंदी के चलते आया । आप नीचे पूरा वीडियो देख सकते हैं जहां बेरोजगार और व्यापारीगण (मध्य और निचले-मध्य समूहों) इस मंडी के बारे में क्या कह रहे है । कुमार को बदनाम करने के लिए वीडियो को क्रॉप किया गया और छह साल पुराने वीडियो से जोड़ा गया है । आप एपिसोड के शुरुआती तीस सेकेंड में देख सकते हैं ।
इस एपिसोड में, जहां कुमार ने राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा दिए गए आंकड़ों के बारे में बात की, यह स्पष्ट है कि हिंदी समाचार टेलीविजन के जाने-माने एंकर 2013 में उतने ही आलोचनात्मक थे, जितने अब हैं ।