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सवर्ण आरक्षण बिल: बातें जो आपको जरूर जाननी चाहिए

संवैधानिक संशोधन विधेयक पारित करने की सुविधा के लिए, सरकार ने राज्यसभा के शीतकालीन सत्र को बढ़ा दिया है ।

By - Mohammed Kudrati |
Published -  9 Jan 2019 1:14 PM
  • पिछले साल दिसंबर में तीन राज्यों,राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधान सभा चुनावों में मिले बड़े झटके से के बाद बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने इस साल मई में लोकसभा चुनाव से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए अपना पहला बड़ा कदम उठाया है। सरकार ने नागरिकों के सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को 10 फीसदी तक आरक्षण प्रदान करने के लिए संविधान (124 वां संशोधन) विधेयक, 2019 पेश किया है। यह आरक्षण सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए लागू होगा।

    सवर्णों के आरक्षण के लिए प्रस्तावित विधेयक को पारित करने के लिए, सरकार ने राज्यसभा के शीतकालीन सत्र को बुधवार तक के लिए यानी एक दिन और बढ़ा दिया। नरेंद्र मोदी सरकार ने सवर्ण आरक्षण बिल को लोकसभा के सामने रखा।

    बिल के संबंध में पांच बातें हो जो आपकी जानकारी में होनी चाहिए:

    1. बिल किस बारे में है ?

    भारत में आरक्षण के लिए कानूनी आधार संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में निहित है। अनुच्छेद 15 लिंग, धर्म, रंग, जाति के जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध लगाता है, हालांकि यह राज्य को "सामाजिक और शैक्षणिक रूप से" पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष प्रावधान बनाने से रोकता नहीं है। अनुच्छेद 16 की बात करें तो यह सरकारी नौकरियों और सेवाओं में अवसर की समानता प्रदान करता है। लेकिन फिर एससी / एसटी और "सामाजिक और शैक्षणिक रूप से" पिछड़े वर्गों के लिए सकारात्मक कार्रवाई पर रोक नहीं है। इस बिल का उद्देश्य आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर ऐसी सकारात्मक कार्रवाई की अनुमति देने के लिए संविधान में संशोधन करना है।

    इसके माध्यम से, सरकार का उद्देश्य शिक्षा और नौकरियों में धर्म की परवाह किए बिना "गरीब सवर्णों" को 10 फीसदी आरक्षण देना है, जिसका अर्थ है कि धार्मिक अल्पसंख्यक इन लाभों का लाभ उठा सकते हैं।

    हालांकि, वर्तमान में यह केवल संघ स्तर पर लागू होगा, सरकार को उम्मीद है कि राज्य भी इस कानून से प्रेरणा लेंगे ।

    2. नए प्रावधानों के तहत आरक्षण के लिए कौन पात्र होगा?

    बिल का उदेश्य निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करते हुए भूमि / संपत्ति होल्डिंग्स और आय के आधार पर आरक्षण प्रदान करना है ।

    a) 8 लाख से कम की घरेलू वार्षिक आय हो
    b) 1000 स्क्वायर फ़ीट से कम ज़मीन वाला घर हो
    c) अधिसूचित नगरपालिकाओं में 100 गज से कम आवासीय स्थान के मालिक हो
    d) गैर-अधिसूचित नगरपालिकाओं में 200 गज से कम आवासीय स्थान के मालिक हो

    3.भारत में आरक्षण की वर्तमान स्थिति क्या है?

    वर्तमान में, भारत में 49.5 फीसदी आरक्षण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) को निम्न ब्रेकअप के साथ दिया गया है:


    राज्य सरकारों के पास राज्य स्तर की सरकारी प्रायोजित शिक्षा और नौकरियों के लिए अपने स्वयं के जाति आधारित आरक्षण वितरण को लागू करने की शक्ति है, और यह ब्रेकअप राज्य के अनुसार अलग होगा।

    तमिलनाडु जैसे राज्यों ने 50 फीसदी आरक्षण के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को पार कर लिया है, राज्य में 69 फीसदी आरक्षण है। जबकि इस आरक्षण व्यवस्था के खिलाफ याचिकाएं शीर्ष अदालत में लंबित हैं। तमिलनाडु में इसका ब्रेकअप इस प्रकार है:


    4. भारत में आरक्षण को नियंत्रित करने वाले नियम

    अपने मौजूदा स्वरूप में आरक्षण के अग्रदूत 1978 में स्थापित मंडल आयोग के माध्यम से आए, शुरुआत में एससी / एसटी के लिए 52 फीसदी कोटा की सिफारिश की, जिसमें ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण भी शामिल था। सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में 27 फीसदी ओबीसी कोटा को बरकरार रखा और कुल आरक्षण को 50 फीसदी पर सीमित कर दिया। दिलचस्प बात यह है कि पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार ने पहली बार आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए मंडल रिपोर्ट के कार्यान्वयन के साथ 10 फीसदी कोटा के लिए तर्क दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने संविधान का हवाला देते हुए खारिज कर दिया था, जिसमें केवल सामाजिक और शैक्षिक प्रतिकूल परिस्थिति के लिए अपवाद थे।

    बूम ने सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति पी.बी. सावंत से बात की जिन्होंने सहमति जताई कि इस मामले में भी, 10 फीसदी प्रस्तावित आरक्षण स्लैब जाति आधारित कोटा के लिए 50 फीसदी मौजूदा आरक्षण स्लैब के ऊपर होगा, 60 फीसदी का कुल आरक्षण प्राप्त होगा।

    चुनौती दिए जाने पर क्या सुप्रीम कोर्ट इस जोड़ को रहने देगा, उसके जवाब में उन्होंने कहा, "यह संविधान संशोधन के कारण पारित होना चाहिए।"

    न्यायमूर्ति सावंत ने संविधान में संशोधन की विधायी प्रक्रिया को और दोहराया (संसद के दोनों सदनों में एक साधारण और विशेष बहुमत से और 50 फीसदी राज्यों द्वारा साधारण बहुमत से बिल पास करना) लेकिन इस बात से संदेहपूर्ण दिखे कि क्या यह प्रक्रिया चार महीने में लोकसभा चुनाव से पहले समाप्त हो जाएगी। उन्होंने कहा, "हर कोई जानता है कि चुनाव से पहले प्रक्रिया खत्म नहीं होगी, वे इस विधेयक का उपयोग चुनाव प्रचार के लिए करेंगे।"

    5. राजनीतिक दलों का इस बिल के प्रति रूझान?

    मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार के इस कदम का खुलकर समर्थन किया है, बशर्ते समाज के अन्य पिछड़े वर्गों के लिए मौजूदा आरक्षण प्रणाली को छुआ न जाए।

    कांग्रेस हमेशा आर्थिक तौर से गरीबों के आरक्षण व उत्थान की समर्थक व पक्षधर रही है।

    दलित,आदिवासियों व पिछड़ों के संवैधानिक आरक्षण से कोई छेड़छाड़ न हो तथा समाज के गरीब लोग,वो चाहे किसी भी जाति या समुदाय से हों,उन्हें भी शिक्षा व रोजगार का मौका मिले। pic.twitter.com/PaR6WKwTTG

    — Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) January 7, 2019

    बीजेपी के एनडीए के सहयोगियों ने भी इस विधेयक के पारित होने के लिए अपना समर्थन व्यक्त किया है। बसपा प्रमुख मायावती ने मंगलवार को केंद्र द्वारा सवर्ण जाति के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए घोषित आरक्षण का स्वागत किया, हालांकि, उन्होंने इस कदम को 'राजनीतिक स्टंट' कहा, जैसा कि एएनआई की रिपोर्ट में बताया गया है।

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