अमित शाह के काफ़िले को रोकने की साल भर पुरानी घटना का वीडियो फ़िर वायरल
बूम ने पाया की घटना अलाहबाद में 2018 में हुई थी जब अलाहबाद विश्वविद्यालय के कुछ विद्यार्थियों ने काफ़िले को रोका था
फ़ेसबुक पर जोर शोर से वायरल हो रहा एक वीडियो जिसमें एक काफ़िले को कुछ लड़कियां और लड़के रोकते हैं और काला कपड़ा लहराते हैं | इसके बाद पुलिसकर्मी आते हैं और लड़कियों को खींच कर सड़क से हटा देते हैं | पुलिसकर्मी लड़कियों के बाल खींच कर उन्हें पुलिस जीप में बैठा देते हैं |
इस 1.06 मिनट की क्लिप में बीच में दो बार नरेंद्र मोदी के एक भाषण की क्लिप भी जोड़ी गयी है जिसमें वो 'लड़की बचाओ, लड़की पढ़ाओ' का नारा लगते नज़र आते हैं |
इस क्लिप को एक कैप्शन के साथ शेयर किया है जिसमें पिछले साल का कोई ज़िक्र नहीं है | कैप्शन में लिखा है: "लड़कियो ने अमितशाह का काफिला रोका लड़कियो के साथ के मारपीट बेटी बचाती हुई बीजेपी |" (Sic)
आपको बता दें की हालांकि यह घटना सच है पर पिछले साल की है जब अमित शाह उत्तर प्रदेश के अलाहबाद में एक दौरे पर थे | इस वीडियो का अभी के परिदृश्य से कोई लेना देना नहीं है |
इस लेख के लिखने तक वीडियो क्लिप 9,000 से ज़्यादा बार शेयर की जा चुकी है | नीचे आप वीडियो देख सकते हैं और इसका आर्काइव्ड वर्शन यहाँ देखें |
फ़ैक्ट चेक
बूम ने सम्बंधित कीवर्ड्स के साथ गूगल ख़ोज की और हमें मिला की यह घटना पुरानी है | इस घटना पर कई मुख्य धारा की मीडिया संस्थानों द्वारा प्रकाशित न्यूज़ लेख और वीडिओज़ मिले |
सबसे पहले वीडियो में दिखाई देने वाली लड़की का नाम नेहा यादव है | इनके साथ कारवां मैगज़ीन ने एक इंटरव्यू प्रकाशित किया था जिसका कुछ अंश आप नीचे पढ़ सकते हैं |
कारवां को नेहा ने बताया की वो बरैली की रहने वाली हैं और उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढ़ाई की है | काफ़िले को रोके जाने वाले प्रश्न पर नेहा ने बताया, "अमित शाह जी 27 जुलाई को अलाहबाद (अब प्रयागराज) आने वाले थे | हमारी मंशा कभी उनके सामने काला झंडा लहराने या काफ़िले को रोकने की नहीं थी | हम सिर्फ उन्हें हमारी कुछ मांगों का ज्ञापन देना चाहते थे | इसके लिए हमें कई जगहों पर कोशिस की | जब वो संगम (अलाहबाद में एक जगह जहाँ गंगा, यमुना और काल्पनिक सरस्वती नदी मिलती हैं) गए थे हमनें उनसे मिलने की कोशिश वहां भी की थी | हमनें तब भी कोशिश की थी जब वो विश्वविद्यालय के हिन्दू हॉस्टल के पास से गुज़रे थे | इन साड़ी कोशिशों में असफल रहने के बाद हम उनके काफ़िले के सामने कूद पड़े जब वो धूमनगंज ज़िले से होकर लौट रहे थे | यह हमारी वास्तविक मांगों के लिए था जैसे की आरक्षण का मुद्दा |…"