'राष्ट्रगान' और बोस-टैगोर विवाद – क्या है पूरा सच?
एक वायरल पोस्ट में दावा किया गया है कि सुभाष चंद्र बोस ने पहली बार इंडियन नेश्नल आर्मी के सैनिकों के साथ 'मूल' राष्ट्रगान गाया था । बोस और आईएनए सैनिकों ने वास्तव में जो गाया था वह 1911 में टैगोर द्वारा लिखे गए एक भजन का हिंदुस्तानी अनुवाद था
एक वायरल पोस्ट में दावा किया गया है कि प्रोविशनल गवर्नमेंट ऑफ़ फ्री इंडिया के राष्ट्रगान शुभ सुख चैन की बरखा में रबीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा कुछ तब्दीलियां करके वर्तमान राष्ट्रगान जन गण मन बनाया गया है । आपको बता दें की ये दावा गलत है ।
वायरल पोस्ट के साथ दिए गए कैप्शन में लिखा है - असली राष्ट्रगान सुने जिसे आजाद हिंद फौज के सैनिकों के साथ नेताजी सुभाष चंद्र बोस गाया करते थे बाद में जिसमें परिवर्तन करके रविंद्र नाथ टैगोर ने जॉर्ज पंचम के स्वागत में बनाया था और जिसे ही आज हर सरकार राष्ट्रगान की मान्यता देखकर गवा रही है।
पोस्ट को यहां देखा जा सकता है और इसके आर्काइव्ड वर्शन तक यहां पहुंचा जा सकता है ।
फ़ैक्ट चेक
बूम ने पाया कि यह दावा तथ्यात्मक रूप से गलत है |
जन गण मन को पहली बार 27 दिसंबर, 1911, को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में सार्वजनिक रूप से गाया गया था |
इंडियन नेशनल आर्मी या आज़ाद हिंद फ़ौज की स्थापना 1942 में राश बिहारी बोस ने की थी और बाद में 1943 में सुभाष चंद्र बोस ने इसे पुनर्जीवित किया था |
यह दावा कि बोस और आईएनए द्वारा राष्ट्रगान पहले गाया गया था और बाद में टैगोर द्वारा रूपान्तरित किया गया था, गलत है क्योंकि आईएनए के गठन से पहले भी टैगोर का वर्शन मौजूद था ।
शुभ सुख चैन बनाम जन गण मन
शुभ सुख चैन दरअसल 1911 में रबीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित ब्राह्मो भजन भारोतो भाग्य बिधाता का एक हिंदुस्तानी (हिंदी और उर्दू) रूपांतर था |
इस गाने का अनुवाद बोस ने, कैप्टन आबिद अली (आईएनए) और मुमताज़ हुसैन के साथ खुद किया था | गाने का संगीत कैप्टन राम सिंह (आईएनए) ने तैयार किया था।
रेडिफ के साथ एक साक्षात्कार में कैप्टन राम सिंह ने स्वयं कहा था, "नेताजी ने प्रेरणा के स्रोत के रूप में फोर्स के लिए संगीत को बहुत महत्व दिया, जिसे खत्म होने तक लड़ने के लिए तैयार किया जा रहा था। मुझे 1943 का वह दिन विशेष रूप से याद है, जब नेताजी सिंगापुर में कैथे बिल्डिंग में तत्कालीन आईएनए प्रसारण स्टेशन पर आए थे और मुझसे रबीन्द्रनाथटैगोर के मूल बंगाली स्कोर से अनुवादित गीत के लिए संगीत तैयार करने के लिए कहा था । उन्होंने मुझे गीत को एक मार्शल धुन देने के लिए कहा, जो लोगों को सोने नहीं देगा बल्कि उन लोगों को जगाएगा जो सो रहे थें । "
इस गीत को 1943 में प्रोविशनल गवर्नमेंट ऑफ़ फ्री इंडिया के राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया था ।
प्रोविशनल गवर्नमेंट ऑफ़ फ्री इंडिया या आज़ाद हिंद (आज़ाद भारत) भारत की एक अस्थायी सरकार थी जो 1943 में भारत में ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के लिए देश के बाहर स्थापित की गई थी ।
जन गण मन के संगीत पर विवाद
आज भारत के राष्ट्रगान के रूप में जिस गाने को मान्यता प्राप्त है, उसकी अंतिम धुन किसने सेट किया है, इसको लेकर सालों से विवाद चला आ रहा है |
बूम ने कई अख़बारों की रिपोर्ट्स और आर्काइव्स को खंगाला तो हमें पता चला इस ब्राह्मो भजन के देश के राष्ट्रगान बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है ।
आयरिश कनेक्ट
1911 में टैगोर ने भारतो भाग्यो बिधाता लिखा था और इसे संगीत भी दिया था, और पहली बार 27 दिसंबर, 1911 को कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सत्र के दूसरे दिन सार्वजनिक रूप से इसे गाया गया था।
हालांकि, 1919 के फरवरी में मार्गरेट कजिन्स नामक एक आयरिश महिला द्वारा टैगोर की रचना के लिए एक नई धुन बनाई गई थी।
वर्ष 1919 में अपने दक्षिण भारत यात्रा के दौरान टैगोर आंध्र प्रदेश के मदनपल्ले में बेसेंट थियोसोफिकल कॉलेज आए थे |
कॉलेज के प्रिंसिपल ( जेम्स हेनरी कजिन्स और उनकी पत्नी मार्गरेट कजिन्स ) ने टैगोर की खातिरदारी का जिम्मा उठाय था | कॉलेज में एक कविता पाठ सत्र के दौरान ही टैगोर ने छात्रों और कजिन्स के सामने भारतो भाग्यो बिधाता गाया था ।
इसके बाद की कहानी अपने आप में एक इतिहास है | टैगोर द्वारा कविता के बारे में समझाए जाने के बाद मार्गरेट कजिन्स ने इसके लिए एक धुन तैयार करने का फैसला किया ।
जन गण मन और इसके आयरिश कनेक्ट के बारे में यहां और यहां पढ़ें |
बूम ने विश्वभारती के पूर्व निदेशक, सबुजकली सेन से भी बात की, जिन्होंने हमें बताया कि भारत का राष्ट्रगान वास्तव में भारतो भाग्यो बिधाता के पहले श्लोक से लिया गया था, जिसे 1911 में टैगोर ने लिखा था । विश्व भारती एक शैक्षणिक संस्थान है जिसे 1921 में टैगोर ने स्थापित किया था ।
ब्रिटिश कनेक्ट
हालांकि राष्ट्रगान की कहानी यहां से एक और मोड़ लेती है । कजिन्स द्वारा जन गण मन को दी गई धुन धीमी थी, करीब वैसी ही जैसी टैगोर ने इसे गाया था ।
राष्ट्रगान का जो मार्शल वर्शन हम आज सुनते हैं, वह ब्रिटिश संगीतकार हर्बर्ट मुरिल द्वारा रचित है । राष्ट्रीय गान के मार्शल ऑर्केस्ट्रा वर्शन के लिए मूरिल को श्रेय दिया जाता है ।
यहां द हिंदू के अर्काइव से 21 जनवरी, 1950 को प्रकाशित एक रिपोर्ट है, जो जन गण मन के स्वीकृत वर्शन के बारे में बात करती है |
आप यहां और यहां जन गण मन को धुन देने में हर्बर्ट मुरिल की भूमिका के बारे में अधिक पढ़ सकते हैं ।
मुद्दा आखिर क्या है ?
राष्ट्रगान और शुभ सुख चैन की धुनों पर हमेशा से एक कन्फ्यूज़न बना रहा है |
शुभ सुख चैन और जन गण मन की धुन के बीच एक समानता उनके मार्शल स्वभाव की वजह से है। जबकि सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद फौज के लिए एक मार्चिंग गीत चाहते थे, शुभ सुख चैन का संगीत उसी को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था ।
जन गण मन के साथ भी ऐसा ही था जैसा कि हर्बर्ट मूरिल के ऑर्केस्ट्रा ने स्वतंत्र भारत के राष्ट्रगान के लिए एक मार्शल स्कोर निर्धारित किया ।
हालांकि, इन दोनों ने रबीन्द्रनाथ टैगोर के भजन भारतो भाग्यो बिधाता से अपनी मूल धुन ली है, और इस प्रकार ये सुनने में काफी समान हैं |