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फैक्ट चेक

द हिंदू ने फाइलोवायरस पर किए गए अध्ययन को ग़लत तरीके से कोरोनावायरस से जोड़ा

यह अध्ययन 2019 नोवेल कोरोनावायरस के प्रकोप से महीनों पहले अक्टूबर 2019 में प्रकाशित हुआ था।

By - Archis Chowdhury |
Published -  6 Feb 2020 4:02 PM IST
  • द हिंदू ने फाइलोवायरस पर किए गए अध्ययन को ग़लत तरीके से कोरोनावायरस से जोड़ा
    बिंदुओ को जोड़िए!! # कोरोनोवायरस समुद्री भोजन बाजार से शुरू नहीं हुआ! (एक बायोवारफेर प्रयोगशाला की संभावना है)। अमेरिका और चीनी डिफेंस (वुहान संस्थान) ने नागालैंड में चमगादड़ों पर खोज की - संभवतः मारक विकसित करने के लिए !! @the_hindu @HMOIndia @PMOIndia #BiologicalWarfare

    ऊपर दिया गया कोट 3 फरवरी की सुबह, सुबीर धर नाम के यूज़र द्वारा पोस्ट किए गए एक ट्वीट से आया है। वह द हिंदू के एक लेख का हवाला देते हुए कोट कर रहे थे। लेख की हेडलाइन का हिंदी अनुवाद कुछ इस प्रकार था, "कोरोनावायरस: नागालैंड में चमगादड़ों और बैट हंटर्स पर वुहान संस्थान द्वारा किए गए अध्ययन की जांच की जाएगी।" थोड़ा आगे पढ़ने पर सब-टेक्स्ट के साथ एक टेक्स्ट बॉक्स था जिसमें लिखा था "गोपनीयता में डूबा हुआ"।

    (द हिंदू के लेख का स्क्रीनशॉट।)



    यह सोशल मीडिया पर वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी और कुछ अन्य विदेशी विश्वविद्यालयों द्वारा नागालैंड में चमगादड़ों और बैट हंटर्स पर किए गए एक गुप्त अध्ययन पर एक साजिश थ्योरी शुरू करने के लिए पर्याप्त था, जो शायद 2019 नोवल कोरोनावायरस के प्रकोप से जुड़ा हुआ है।




    अरे! जरा रुकिए

    हालांकि, हेडलाइन से ही काफी लोग चौंक गए, लेकिन लेख में एक अगल ही कहानी पढ़ने को मिली। नागालैंड में एक जनजाति के साथ चमगादड़ से मनुष्यों में इबोला जैसे फिलोवायरस के संचरण की जांच के लिए ड्यूक-नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर मेडिकल स्कूल और वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के रिसर्चर के साथ बैंगलोर के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज द्वारा एक अध्ययन किया गया था।

    ड्यूक-एनयूएस के माध्यम से संयुक्त राज्य अमेरिका के रक्षा विभाग की रक्षा ख़तरा निवारण एजेंसी (डीटीआरए) से अप्रत्यक्ष रूप से धन प्राप्त हुआ, जिन्होंने अध्ययन को आगे बढ़ाने में सहयोग किया।

    द हिंदू लेख के अनुसार, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने इस बात की जांच के लिए आदेश दिया था कि विदेशी फंडिंग और विदेशी शोधकर्ताओं की भागीदारी के साथ भारतीय व्यक्तियों पर एक अध्ययन करने के लिए आवश्यक अनुमति दी गई थी या नहीं।

    हैरानी की बात है कि पूरी कहानी में अध्ययन और कोरोनावायरस के बीच किसी भी लिंक का उल्लेख नहीं था, जैसा कि हेडलाइन में बताया गया है।

    वुहान इंस्टीट्यूट की भागीदारी पर, एनएससीबी ने एक प्रेस बयान में कहा कि वे सीधे अध्ययन में शामिल नहीं थे, लेकिन रिसर्च के लिए ड्यूक-एनयूएस को महत्वपूर्ण अभिकर्मकों (रासायनिक प्रतिक्रियाओं में मदद करने वाले पदार्थ) की आपूर्ति की।

    हालांकि, ऐसा लगता है कि ड्यूक-एनयूएस शोधकर्ता वास्तव में अध्ययन के संचालन में शामिल थे और धन विदेशों से आया था। क्या एनसीबीएस को आईसीएमआर द्वारा अनिवार्य अनुमति प्राप्त हुई थी?

    बूम ने एनसीबीएस के एक प्रवक्ता से बात की, लेकिन उन्होंने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें आईसीएमआर से कोई रिपोर्ट नहीं मिली है और उन्हें जांच के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

    हैडलाइन पर चर्चा

    जीवविज्ञानी और एनसीबीएस में शिक्षाविदों के प्रमुख, मुकुंद तटाई ने ट्वीटर पर द हिंदू द्वारा किए गए दावों पर सवाल उठाए।

    I was shocked to see such shoddy journalism from @the_hindu. They spun a 3-month-old *open-access* paper into a "secret" conspiracy theory, without even requesting a statement from the authors! The report, even the headline, contained many false statements. pic.twitter.com/oB3Q02nVpY

    — Mukund Thattai (@thattai) February 4, 2020

    तटाई के अनुसार, लेख प्रकाशित करने से पहले द हिंदू ने रिसर्चरों से बयान नहीं लिया है और उन्होंने दावा किया कि "कई झूठे बयान" शामिल हैं।

    लेख के हेडलाइन ( जिसे अब बदल दिया गया है ) में "कोरोनावायरस" के उल्लेख पर बोलते हुए, एनसीबीएस के प्रेस बयान में कहा गया है कि "कोई जैविक नमूने या संक्रामक एजेंटों को भारत में या उसके बाहर स्थानांतरित नहीं किया गया था, और इस अध्ययन का कोरोनावायरस के साथ कोई संबंध नहीं है।"

    नई हेडलाइन का हिंदी अनुवाद है, "नागालैंड में चमगादड़ों और बैट हंटर्स पर अध्ययन की जांच।" हमने लेख के प्रिंट वर्शन पर हेडलाइन के साथ इसकी तुलना की और पाया कि इसमें भ्रामक कीवर्ड शामिल नहीं थे।

    ( द हिंदू, बेंगलुरु एडिशन, 3 फरवरी, 2020 )

    पत्रकार प्रियंका पुल्ला ने एक ट्विटर थ्रेड में लिखा, जिसमें रिपोर्ट के मूल बिंदू और द हिंदू द्वारा बनाई गई ग़लतफेहमी के बारे में बताया।

    पुला ने कहा, "कहानी में कई त्रुटियां थीं, जो अनिवार्य रूप से एक डरावनी तस्वीर में बदल गईं - और यह चल रहे चिंताजनक वैश्विक प्रकोप के दौरान पूरी तरह से अनावश्यक है।"

    Thread on @the_hindu story about a study on the Naga Bomrr clan being under scrutiny for not seeking the special permissions it needed. The story appeared on the front page of the Bengaluru edition https://t.co/QBZB0tsZy3

    — PriyankaPulla (@PriyankaPulla) February 4, 2020

    बूम ने द हिन्दू के पाठक संपादक, ए.एस पन्नीरसेल्वन से संपर्क किया जिन्होंने वेब एडिशन में त्रुटि स्वीकार करते हुए एक ईमेल में कहा, "आपके मेल के सन्दर्भ में जो एन.सी.बी.एस के फिलोविरुस पर अध्यन के बारे में था, द हिन्दू के वेब एडिशन की हेडलाइन प्रिंट की हैडलाइन से अलग थी| जब यह त्रुटि सामने आयी, वेब एडिशन में उसे इस खंडन के साथ सुधार दिया गया की: लेख की हैडलाइन के पुराने रूप में कोरोना वायरस उल्लेखित था जो इस लेख से सीधे सम्बंधित नहीं है, यह लेख ने वुहान इंस्टिट्यूट पर भी फोकस किया था, जो लेख में केवल एक प्रतिभागी है| हैडलाइन को उपयुक्त रूप से सुधार दिया गया है|"

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