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      कृषि सुधार विधेयकों पर चर्चा क्यों हो रही है?

      बूम ने कृषि सम्बन्धी तीन अध्यादेशों के पांच जून को पारित होने से अब तक हुए प्रदर्शनों और मुख्य बातों को इकठ्ठा किया है |

      By - Saket Tiwari |
      Published -  23 Sept 2020 10:10 AM
    • कृषि सुधार विधेयकों पर चर्चा क्यों हो रही है?

      5 जून 2020 को केंद्र सरकार द्वारा कृषि उत्पाद, किसान और कृषि से सम्बंधित तीन अध्यादेश पारित किये गए | विगत तीन महीनों में कई प्रदर्शन हुए क्योंकि कुछ किसान यूनियनों और विपक्षी पार्टियों जैसे भारतीय किसान यूनियन और कांग्रेस का मानना है की यह किसान-हित में नहीं हैं |

      विरोध और आलोचनाओं के बीच भी केंद्र सरकार ने कृषि सुधारों पर तीन विधेयकों - किसानों का उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020; मूल्य आश्वासन पर किसान (संरक्षण एवं सशक्तिकरण) समझौता और कृषि सेवा विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 - को लॉकडाउन के दौरान जारी अध्यादेशों को बदलने के लिए 14 सितंबर को संसद में पेश किया गया था |

      शीतकालीन सत्र में दो बिल संसद के दोनों सदनों में पारित हो गए हैं | इसके चलते विपक्ष ने राज्यसभा को बायकाट किया है | आज कांग्रेस नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद राष्ट्रपति से इसी मुद्दे पर चर्चा करेंगे | विपक्ष ने संसद परिसर में इन बिल्स के विरोध में मार्च भी किया |

      #WATCH: MPs of Opposition parties march in Parliament premises in protest over farm bills. Placards of 'Save Farmers' & 'Save Farmers, Save Workers, Save Democracy' seen.

      Congress' Ghulam Nabi Azad, TMC's Derek O'Brien, and Samajwadi Party's Jaya Bachchan present, among others. pic.twitter.com/PIIxqciFpG

      — ANI (@ANI) September 23, 2020


      ऐसे ही एक प्रदर्शन के चलते 11 सितम्बर 2020 को पीपली (कुरुक्षेत्र) में किसानों पर पुलिस ने लाठी चार्ज किया | इससे मामला और बिगड़ता नज़र आ रहा है | गौरतलब है कि इसके विरोध में कैबिनेट मंत्री खाद्य प्रसंस्करण मंत्री और भटिंडा की सांसद हरसिमरत कौर बादल ने इस्तीफा दे दिया है |

      Farm Bill 2020
      Infogram


      देशव्यापी प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं?

      तीन बिलों में से सबसे ज़्यादा विरोध उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020 बिल का हो रहा है |

      व्यापक प्रदर्शन होने के चलते कोई एक मांग नहीं है परन्तु सबसे मुख्य मुद्दा उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020 के उन हिस्सों से है जो 'ट्रेड एरिया', 'ट्रेडर', 'डिस्प्यूट रेसोलुशन' और 'मार्किट फी' के बारे में बात करते हैं |

      इकनोमिक टाइम्स से चर्चा में भारतीय किसान संघ (बी.के.एस) के राष्ट्रीय महासचिव दिनेश कुलकर्णी ने कहा, "तीन अध्यादेशों को 5 जून को पास किया गया था, सरकार के पास दिसंबर तक का समय है। बिल पास होने की जल्दी क्यों है?"

      संघ कि चार मांगे हैं (जैसा कि दिनेश कुलकर्णी ने कहा है):

      1: कानूनी प्रोविज़न शामिल हो कि किसी को भी मिनिमम सपोर्ट प्राइस से कम भुगतान न हो

      2: ट्रेडर्स खुद को केंद्र और राज्य दोनों जगह पंजीकृत करें और सिक्योरिटी डिपाजिट दें

      3: हर ज़िले में कृषि न्यायालय बने ताकि किसान कानूनी मामलों को अपने ही ज़िले में लड़ सके

      4: इन बिलों में कॉर्पोरेट्स भी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के चलते किसान के रूप में पहचाने जा रहे हैं, परिभाषा में किसान केवल वो हों जो खेती पर निर्भर हैं

      "ट्रेड एरिया", "ट्रेडर", "मार्किट फी" प्रदर्शनों से कैसे जुड़े हैं?

      इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, भारतीय किसान यूनियन के प्रेजिडेंट बलबीर सिंह राजेवाल फार्मर्स प्रोडूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) बिल, 2020 की धारा 2 (एम) में परिभाषित "व्यापार क्षेत्र" पर कहते हैं: "एपीएमसी मंडी प्रणाली 200-300 गाँवों में हर मंडी को अच्छी तरह से विकसित करती है। लेकिन नए अध्यादेश ने मंडियों को उनकी भौतिक सीमाओं तक सीमित कर दिया है |"

      वहीँ "ट्रेडर" पर प्रदर्शनकारियों का कहना है कि पहले कमीशन एजेंटों पर भरोसा रहता था क्योंकि वह लाइसेंस लेता है जो राज्य के ए.पी.एम.सी कानून में ज़रूरी है पर नए कानून में लाइसेंस ज़रूरी नहीं है |

      "प्रदर्शनकारियों का कहना है कि लाइसेंस की मंज़ूरी प्रक्रिया के दौरान वित्तीय स्थिति सत्यापित होने के कारण अरथिया की विश्वसनीयता है। "लेकिन एक किसान नए कानून के तहत एक व्यापारी पर कैसे भरोसा कर सकता है?" राजेवाल ने कहा।

      इससे साफ़ होता है कि ज़्यादातर प्रदर्शन केवल पंजाब और हरयाणा में क्यों हो रहे हैं |

      "यदि आप मंडी के लेन-देन की लागत 1 क्विंटल गेहूँ की गणना करते हैं, तो यह लगभग 164 रुपये आता है। इसलिए, मंडी के बाहर हर क्विंटल गेहूं की बिक्री पर बड़े कॉर्पोरेट्स ज़्यादा पैसे बचा रहे हैं | वह इसका उपयोग शुरुआती दिनों में किसानों को बेहतर कीमत देने में करेंगे। पर जब मंडी प्रणाली खत्म हो जाएगी, तो वे व्यापार पर एकाधिकार कर लेंगे," राजेवाल ने 'मार्केटिंग फी' के मुद्दे पर इंडियन एक्सप्रेस से कहा |

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