बिहार चुनाव 2025 से पहले वोटर लिस्ट में बड़ा बदलाव, किसका नाम हट सकता है?
प्रवासी मजदूरों से लेकर नेपाल सीमा पार से शादी करके आईं महिलाएं, बिहार वोटर लिस्ट संशोधन से किन लोगों पर है जोखिम और क्यों, इस एक्सप्लेनर में जानिए.

सविता देवी (बदला हुआ नाम) जब से मतदान के योग्य हुईं, हर चुनाव में उन्होंने ईमानदारी से वोट किया, चाहे वह 2020 का विधानसभा चुनाव हो या फिर 2024 का लोकसभा चुनाव. बिहार के सीतामढ़ी जिले में नेपाल सीमा से सटे एक गांव निवासी 28 वर्षीय सविता के पास वोटर कार्ड, आधार कार्ड और वे सभी दस्तावेज हैं जो अब तक एक नागरिक होने के नाते वोट देने के लिए जरूरी थे.
उन्हें बिल्कुल अंदाजा नहीं है कि उनका नाम जल्द ही वोटर लिस्ट से हट सकता है. वह यह भी नहीं जानतीं कि नागरिकता प्रमाणपत्र होता क्या है, उन्होंने चुनाव आयोग की नई मुहिम के बारे में नहीं सुना है और यह भी नहीं पता कि अधिकारी घर-घर जाकर नए फॉर्म और दस्तावेज जमा कर रहे हैं.
वह कहती हैं, "मुझे कुछ भी नहीं पता है और अभी तक कोई अधिकारी मेरे घर नहीं आया है." उनकी यह स्थिति बिहार के लाखों मतदाताओं जैसी है जिन्हें चुनाव आयोग के नए अभियान के बारे में सटीक जानकारी नहीं है. चुनाव से पहले बिहार में वोटरों के बीच भ्रम की स्थिति है.
बिहार में विधानसभा चुनाव से कुछ ही महीने पहले, चुनाव आयोग ने बिहार की वोटर लिस्ट का 'विशेष गहन पुनरीक्षण' (Special Intensive Revision) अभियान शुरू किया है, जिसमें लगभग 7.89 करोड़ नाम दर्ज हैं. सीधे शब्दों में कहें तो, यह प्रक्रिया फर्जी मतदाताओं को हटाने और उन लोगों के नाम काटने के लिए की जा रही है जो अपनी भारतीय नागरिकता साबित नहीं कर सकते.
चुनाव आयोग की ओर से 25 जून 2025 से जारी इस अभियान को लेकर अब एक बड़ी समस्या सामने है- जिन मतदाताओं पर इसका सबसे अधिक असर पड़ सकता हैं, उन्हें इस पूरी प्रक्रिया की कोई जानकारी ही नहीं है.
केरल में रह रहे प्रवासी मजदूरों से लेकर स्थानीय पुरुषों से शादी कर बिहार आईं विदेशी मूल की महिलाएं -- ऐसे अनगिनत लोग हैं जिन्हें नए नियमों की भनक तक नहीं है, जिसके तहत उनका नाम मतदाता सूची से हटाया जा सकता है.
बीते 24 जून को इस अभियान की घोषणा होते ही शहरों और गांवों दोनों में अफरा-तफरी फैल गई है लेकिन अब सबसे बड़ी परेशानी यह है कि जिन लोगों पर इस बदलाव का सबसे ज्यादा असर पड़ेगा, उन्हें यह तक नहीं पता कि उनके साथ क्या होने जा रहा है.
क्या मतदाताओं को पता है कि क्या हो रहा है?
मुकेश पासवान केरल में काम करते हैं और पिछले साल ही उन्होंने अपना नाम वोटर लिस्ट में जुड़वाया था. उन्हें चुनाव आयोग के नए नियमों के बारे में तब तक कोई जानकारी नहीं थी, जब तक कि रिपोर्टर ने नहीं बताया. वह कहते हैं, "अब मैं गांव में अपने पिता को इसकी जानकारी दूंगा ताकि वे फॉर्म भरवा दें."
सीतामढ़ी जिले के नेपाल सीमा से सटे एक गांव की 28 वर्षीय सविता देवी ने पिछले दो चुनावों में मतदान किया है. लेकिन उन्हें नहीं पता कि नागरिकता प्रमाणपत्र क्या होता है, जो अब मतदान करने के लिए जरूरी हो गया है. उन्हें इस बात की भी कोई जानकारी नहीं है कि चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट का रिविजन कैंपेन शुरू किया है और इसके तहत लोगों को नए फॉर्म और दस्तावेज जमा करने होंगे.
एक स्थानीय ग्रामीण महिला ने बताया कि उनके इलाके के तकरीबन 500 आदमियों ने नेपाल की महिलाओं से शादी की है और उनमें से किसी महिला के पास सिटिजनशिप सर्टिफिकेट नहीं है- जो अब एक ऐसी अनिवार्यता बन गई है, जिसके बिना उनके नाम वोटर लिस्ट से हटाए जा सकते हैं.
चुनाव आयोग के किन नए नियमों से है हलचल?
चुनाव आयोग के 25 जून 2025 को जारी किए गए जटिल निर्देशों से भ्रम की स्थिति पैदा हुई. इन निर्देशों में कहा गया कि एक जुलाई 1987 से पहले जन्मे वोटरों को अपनी जन्मतिथि या जन्मस्थान से संबंधित प्रामाणिक दस्तावेज पेश करने होंगे.
जो मतदाता 1 जुलाई 1987 और 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्मे हैं, उन्हें अपने और अपने किसी एक अभिभावक के दस्तावेज देने होंगे.
और जो 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे हैं, उन्हें अपने और दोनों अभिभावकों के दस्तावेज जमा करने होंगे.
विपक्षी दलों का कहना है कि ये जटिल नियम दरअसल विवादित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) प्रक्रिया शुरू करने की कोशिश है. इसे लेकर उन्होंने दिल्ली में चुनाव अधिकारियों से मिलकर आपत्ति दर्ज करवाई है.
नियमों में क्या बदलाव हुआ है?
तीखी आलोचना के बाद, चुनाव आयोग ने 30 जून को नए निर्देश जारी किए. इनमें कहा गया कि जिन मतदाताओं के नाम 2003 की वोटर लिस्ट में दर्ज नहीं हैं, वे अब अलग से दस्तावेज देने के बजाय उसी पुरानी लिस्ट से अपने माता-पिता का विवरण भर सकते हैं. उन्हें केवल अपने बारे में वैध दस्तावेज जमा करने होंगे.
ये नए दिशा-निर्देश पहले की तुलना में आसान हैं, लेकिन इसके बावजूद लोगों में जागरूकता बहुत कम है. बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने एक बयान जारी कर कहा कि यह पुनरीक्षण अभियान इस उद्देश्य से चलाया जा रहा है कि सभी पात्र नागरिकों को मतदान का अधिकार मिले और फर्जी नाम सूची से हटाए जा सकें. साथ ही यह भी कहा कि नाम जोड़ने और हटाने की प्रक्रिया पारदर्शी होगी.
इस प्रक्रिया को कैसे पूरा किया जाएगा?
इस पूरे अभियान के लिए बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) संवैधानिक नियमों का पालन करते हुए कि कौन वोट कर सकता है और कौन नहीं, हर घर जाकर वोटर डिटेल को वेरिफाइ करेंगे.
चुनाव आयोग इस काम के लिए लगभग 78,000 बीएलओ की मदद ले रहा है. इसके अलावा आयोग ने प्रत्येक मतदान केंद्र पर अधिकतम 1,200 वोटरों की सीमा तय की है, इसलिए नए मतदान केंद्र बनाए जा रहे हैं, जिसके लिए 20,603 अतिरिक्त बीएलओ की जरूरत होगी. वहीं एक लाख स्वयंसेवक मतदाताओं को फॉर्म भरने और अन्य कार्यों में मदद करेंगे.
लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि यह प्रयास प्रभावी रूप से काम नहीं कर पा रहा है. एक बीएलओ ने नाम न छापने की शर्त पर बूम को बताया, "इस पूरी प्रक्रिया को एक महीने में पूरा कर पाना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है. इसमें बहुत समय लगेगा. प्रक्रिया शुरू हुए लगभग एक हफ्ता हो चुका है, लेकिन अभी तक कई बीएलओ को वह किट ही नहीं मिली है जिससे वे मतदाताओं तक पहुंच सकें."
2003 को आधार वर्ष क्यों बनाया गया है?
चुनाव आयोग का कहना है कि बिहार में आखिरी बार मतदाता सूची में बड़ा संशोधन 2003 में हुआ था, इसलिए उस साल की सूची को इस बार के अभियान के लिए बेसलाइन बनाया गया है. 2003 की वोटर लिस्ट में शामिल 4.96 करोड़ मतदाताओं को रिविजन ड्राइव में किसी खास समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा.
असल चुनौती उन 2.93 करोड़ नए मतदाताओं के लिए है जो 2003 के बाद सूची में जुड़े हैं. इनमें से कई को नए नियमों की जानकारी नहीं है, जिस कारण उनका मतदान का अधिकार छिन सकता है.
प्रवासी मजदूर वोटिंग में कैसे हिस्सा ले सकते हैं?
सूचना की कमी का सबसे बुरा असर प्रवासी मजदूरों पर पड़ रहा है. जमशेद आलम (32) पिछले पांच साल से केरल में काम कर रहे हैं, लेकिन उनका वोट बिहार में है. जब उन्हें चुनाव आयोग के नए नियमों के बारे में पता चला, तो वह चिंता में पड़ गए. उन्होंने बूम से कहा, "मैं इतनी जल्दी घर नहीं जा सकता, इसलिए अपने पिताजी और भाई से कहूंगा कि वह मेरे लिए फॉर्म भर दें."
हालांकि प्रवासी मजदूर खुद या अपने परिवार के सदस्यों की मदद से ऑनलाइन फॉर्म भर सकते हैं लेकिन ज्यादातर लोगों को इन विकल्पों की जानकारी नहीं है.
2003 के बाद जुड़े वोटरों के लिए कौन से डॉक्युमेंट जरूरी हैं?
जो मतदाता 2003 के बाद वोटर लिस्ट में जोड़े गए हैं, उन्हें 2003 की वोटर लिस्ट से अपने माता-पिता का विवरण देना होगा और अपने बारे में कोई एक वैध दस्तावेज पेश करना होगा. इन डॉक्युमेंट में स्कूल सर्टिफिकेट, जन्म प्रमाणपत्र, जाति प्रमाणपत्र या अगर उनके पिता के नाम जमीन है तो पारिवारिक रिकॉर्ड प्रदान कर सकते हैं.
अधिकारियों ने बूम से बातचीत में बताया कि अगर कोई बीएलओ इस बात से संतुष्ट हो जाए कि व्यक्ति स्थानीय है और भारतीय नागरिक है, तो वह ग्राम प्रधान का पत्र भी स्वीकार कर सकते हैं.
महत्वपूर्ण बात यह है कि ड्राइविंग लाइसेंस, आधार कार्ड, यहां तक कि मौजूदा वोटर कार्ड जैसे डॉक्युमेंट नागरिकता का प्रमाण नहीं माने जाएंगे, खासकर उन मतदाताओं के लिए जिनका नाम 2003 के बाद जोड़ा गया है.
बिहारियों से शादी करने वाली विदेशी महिलाओं का क्या होगा?
वोटर लिस्ट में रिविजन उन विदेशी महिलाओं के लिए विशेष समस्याएं खड़ी कर रहा है जिन्होंने बिहार के पुरुषों से शादी की है. अगर कोई महिला नेपाल, बांग्लादेश या किसी अन्य देश से शादी करके बिहार आई है और उनका नाम 2003 के बाद वोटर लिस्ट में जोड़ा गया है, तो अब उन्हें नए फॉर्म के साथ अपना भारतीय नागरिकता प्रमाणपत्र भी जमा करना होगा. अगर उन्होंने अब तक भारतीय नागरिकता नहीं ली है, तो उनका नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया जाएगा.
एक बीएलओ ने बूम को बताया, "हमें स्पष्ट निर्देश मिले हैं कि यदि किसी विदेशी महिला ने गृह मंत्रालय में आवेदन देकर भारतीय नागरिकता नहीं ली है और फर्जी आधार कार्ड या अन्य दस्तावेजों के जरिए वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाया है, तो उसका नाम सूची से हटा दिया जाएगा."
बिहार के सात जिले नेपाल से लगते हैं और इन सीमावर्ती इलाकों में बिहार और नेपाल के नागरिकों के बीच विवाह आम प्रचलन में है. चुनाव आयोग का यह अभियान विशेष रूप से इन सीमा क्षेत्रों में रहने वाली नेपाली मूल की महिलाओं को प्रभावित करेगा जिनमें से अधिकतर को इन नए नियमों की जानकारी तक नहीं है.
इस प्रक्रिया को पूरा करने की समय सीमा क्या है?
चुनाव आयोग की यह मुहिम 25 जून से शुरू हो चुकी है और 26 जुलाई तक सभी फॉर्म बांटे और जमा कर लिए जाने हैं. चुनाव आयोग का 30 सितंबर तक अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित करने का लक्ष्य है.
बीएलओ को निर्देश दिया गया है कि वे प्रत्येक मतदाता के घर कम से कम तीन बार जाकर भरे हुए फॉर्म एकत्र करें. पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए, सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों ने 1,54,977 बूथ-स्तरीय एजेंट नियुक्त किए हैं जो इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी कर रहे हैं.
अगर कोई मतदाता निर्धारित समयसीमा (26 जुलाई) तक फॉर्म जमा नहीं कर पाता, तो वह 1 अगस्त से 1 सितंबर के बीच फॉर्म-6 और एक घोषणा पत्र के माध्यम से अपना नाम जोड़ने के लिए आवेदन कर सकता है.
लेकिन 7.89 करोड़ लोगों तक पहुंचने का यह कार्य खराब तैयारी के चलते जूझता हुआ दिख रहा है और सबसे बड़ी बात उन मतदाताओं के बीच जागरूकता की भारी कमी है जिनका राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा है.