सोशल मीडिया से बढ़ रहा डिजिटल अरेस्ट का खतरा, एक्सपर्ट्स ने बताईं चुनौतियां
साइबर अपराध के नए प्रारूप डिजिटल अरेस्ट को लेकर लगातार जागरूकता और चर्चा के बाद भी इसके केस कम नहीं हो रहे हैं.
साइबर अरेस्ट के बढ़ते मामले
- साइबर अपराध जगत में डिजिटल अरेस्ट इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा में
- जनवरी से अप्रैल 2024 तक इस स्कैम के चलते 120.30 करोड़ रुपये का नुकसान
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इससे बचने के लिए तीन सूत्र दिए- रुको, सोचो, एक्शन लो
- डिजिटल अरेस्ट से निपटने के लिए पुलिस के सामने कई चुनौतियां हैं
साइबर अपराध की दुनिया में डिजिटल अरेस्ट इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा में है. साल के शुरुआती चार महीने में ही इस स्कैम के चलते भारतीयों को 120.30 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है. यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 अक्टूबर 2024 को 'मन की बात' रेडियो कार्यक्रम में डिजिटल अरेस्ट को लेकर बात की और इससे बचने के लिए तीन सूत्र भी दिए- रुको, सोचो और एक्शन लो.
हालांकि डिजिटल अरेस्ट के मामलों से निपटने के लिए कई तरह की चुनौतियां सामने हैं. इस तरह के मामलों में व्यक्ति को मानसिक रूप से इतना अस्थिर कर दिया जाता है कि वह सूझबूझ खोकर ठगों की बात को सच मान लेता है.
डिजिटल अरेस्ट के केस में जालसाज अचानक कॉल करके विक्टिम के नाम पर अवैध सामान, ड्रग्स, नकली पासपोर्ट या अन्य प्रतिबंधित पार्सल पकड़े जाने की जानकारी देते हैं. कई केस में पैरंट्स या करीबी रिश्तेदारों को टारगेट कर उन्हें ऐसी जानकारी देंगे कि या आपका बेटा या बेटी या फिर रिश्तेदार किसी गंभीर अपराध में पकड़ा गया है.
इसके बाद अपराधी स्काइप या वॉट्सऐप वीडियो कॉल से संपर्क करते हैं. वह खुद को कानून प्रवर्तन या फिर पुलिस अधिकारी बताकर धमकाते हैं और गिरफ्तारी के झूठे बहाने से डिजिटल रूप से बंधक बना लेते हैं. इस दौरान वह सरकारी वर्दी में नजर आते हैं और पीछे का सेटअप भी किसी पुलिस थाने या सरकारी ऑफिस जैसा दिखाई देता है. इसके बाद विक्टिम से समझौता करने या केस बंद करने के लिए पैसे की डिमांड रखी जाती है.
इंसान के दिमाग को हैक कर लेते हैं अपराधी
पूर्व आईपीएस और साइबर क्राइम मामलों के एक्सपर्ट त्रिवेणी सिंह कहते हैं, "हर आदमी को कानून और पुलिस कचहरी का डर होता ही है. ऐसे में जैसे ही साइबर जालसाज ईडी- सीबीआई या पुलिस अधिकारी का रूप धरकर सामने आते हैं तो शख्स घबरा जाता है. ये लोग स्टूडियो बनाकर काम करते हैं. वीडियो कॉल में पीछे पूरा पुलिस स्टेशन दिखेगा, ईडी के वारंट, सीबीआई के वारंट दिखाकर डराते हैं. साइबर ठग उस आदमी को पूरा यकीन दिला देते हैं कि उसने कोई अपराध किया है. इस स्थिति में पीड़ित एक तरह से हिप्नोटाइज (सम्मोहित) हो जाता है और उनकी बात मानने लगता है."
काउंसलिंग साइकॉलजिस्ट डॉ. नेहा आनंद इस बारे में कहती हैं, "इनका मॉडस ऑपरेंडी ही यही है कि इंसान की मनोदशा पर चोट करना. ये तीन फेस में ट्रैप करते हैं. पहला- हड़बड़ाहट में काम कराएंगे. अचानक से कॉल आया कि आपका बेटा ड्रग्स केस में पकड़ा गया है. यह एक ऐसा स्टेटमेंट जो तुरंत बॉडी में स्ट्रेस हॉर्मोन रिलीज करता है. थोड़ी देर के लिए आपका दिमाग तर्कसंगत रूप से काम करना बंद कर देता है."
वह आगे कहती हैं, "इसके बाद वह आपको डराना धमकाना शुरू कर देंगे कि आप डिजिटल अरेस्ट हैं, किसी को कॉल नहीं कर सकते. पुलिस या सरकारी एजेंसियों के नाम पर लोग अमूनन डरते ही हैं. इसके बाद तीसरे फेस में एफआईआर और चार्जशीट निकालने के नाम पर पैसों की डिमांड रखते हैं. इस स्टेज पर आकर इंसान टूट चुका होता है."
सोशल मीडिया पर ओवर पोस्टिंग से जालसाजों को बढ़ावा
साइबर एक्सपर्ट्स के अनुसार, डिजिटल अरेस्ट में ज्यादातर उन्हें निशाना बनते हैं जो कानून- व्यवस्था का सम्मान करते हैं. इसके अलावा सोशल मीडिया पर पल-पल की अपडेट और तस्वीरें शेयर करने वाले लोग भी साइबर अपराधियों का आसान शिकार बन रहे हैं.
त्रिवेणी सिंह बताते हैं, "ये लोग सोशल मीडिया से टारगेट करते हैं, वहीं पर शिकार खोजते हैं और जानकारी निकालते हैं. ज्यादातर सीनियर सिटीजन को टारगेट कर रहे हैं जो अच्छी जॉब में रह चुके हैं. नोएडा में मेजर जनरल, या फिर पंजाब में डायरेक्टर जनरल से लेकर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर, साइबर जालसाज उन्हें निशाना बनाते हैं जो कानून से डरते हैं और पैसों की डिमांड पूरी कर सकते हैं."
साइबर एक्सपर्ट अनूप मिश्रा कहते हैं, "डिजिटल अरेस्ट के लिए विक्टिम ढूंढने से पहले अपराधी लोग सोशल मीडिया पर प्रोफाइलिंग करते हैं. इसके लिए सबसे बड़ा दोषी है सोशल मीडिया पर जरूरत से ज्यादा पोस्टिंग और अनजान लोगों से फ्रेंडशिप, जिसको व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते उसको सोशल मीडिया पर जोड़ने की जोड़ने की सलाह नहीं दी जाती है."
साइबर सुरक्षा की जानकारी का अभाव
अनूप आगे कहते हैं, "इसके अलावा यहां डिजिटल साक्षरता दर की कमी भी बड़ा कारण है. भारत में डिजिटलीकरण काफी तेजी से हुआ है लेकिन लोगों में साइबर सुरक्षा और प्राइवेट डेटा शेयरिंग पॉलिसी के बारे में जागरूकता न के बराबर है."
इसके अलावा साइबर क्राइम का शिकार हो जाने के बाद भी लोग पुलिस के पास जाकर शिकायत दर्ज कराने से हिचकते हैं. साइबर एक्सपर्ट अनूप कहते हैं, "इसके पीछे कई कारण हैं जैसे- जागरूकता का अभाव, या फिर राशि का कम होना. ऐसे में कई बार पुलिस के पास जानकारी या तो नहीं पहुंचती या फिर देर से पहुंचती और तब तक रिकवरी की संभावना खत्म हो चुकी होती है. 100 में से एक आदमी साइबर एफआईआर के बारे में जानता है और करता है."
पुलिस के सामने क्या हैं चुनौतियां
साइबर अपराध को रोकने के लिए देशभर के अलग-अलग हिस्सों में 262 साइबर पुलिस स्टेशन सक्रिय हैं. इसके अलावा पिछले दिनों केंद्र सरकार की ओर से पांच हजार साइबर कमांडो की भर्ती का ऐलान किया गया. हालांकि एक्सपर्ट्स का मानना है कि बढ़ते अपराध को रोकने के लिए यह उतना पर्याप्त नहीं है.
मुजफ्फरनगर में तैनात साइबर थाना इंचार्ज सुल्तान सिंह कहते हैं, "साइबर क्राइम के मामलों में अपराधी फेक केवाईसी का इस्तेमाल करते हैं या फिर किसी गरीब जैसे स्ट्रीट वेंडर वगैरह का अकाउंट नंबर लेकर ऑपरेट करते हैं. ऐसे में असल अपराधी तक पहुंच जटिल हो जाती है."
त्रिवेणी सिंह कहते हैं, "ऐसे मामलों में पुलिस को आसानी से सफलता नहीं मिलती, क्योंकि जिस स्तर का सपोर्ट सिस्टम चाहिए, इंवेस्टिगेशन स्किल और संसाधन चाहिए वह पुलिस के पास नहीं हैं. "
इसके अलावा इंडियन साइबरक्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (I4C) के अनुसार, डिजिटल अरेस्ट में शामिल सरगना अधिकतर दक्षिणपूर्व एशियाई देश- म्यांमार, लाओस और कंबोडिया से इसे अंजाम देते हैं.
डिजिटल अरेस्ट का शिकार होने से कैसे बचें
-फोन कॉल पर किसी को बंधक नहीं बनाया जा सकता
साइबर थाना इंचार्ज सुल्तान सिंह कहते हैं, "वीडियो कॉल करने वाले को गौर से देखें तो समझ आ जाता है कि वह कोई फ्रॉड है. उनकी बॉडी लैंग्वेज पर गौर कीजिए, एक आईपीएस अधिकारी कभी किसी को डरा-धमकाकर पैसे की डिमांड नहीं करता. इसके अलावा फोन कॉल पर किसी को बंधक नहीं बनाया जा सकता और न ही गिरफ्तारी का वारंट जारी किया जा सकता है."
- स्कैमर से ज्यादा देर बात न करें, फोन काट दें
डॉ. नेहा आनंद कहती हैं, "कभी किसी अनजान नंबर से आई वॉट्सऐप कॉल या वीडियो कॉल को न उठाएं. अगर गलती से उठा भी लिया है तो ज्यादा देर बात न करके फोन काट दीजिए. क्योंकि आप जितना ज्यादा बात करेंगे उतना संभावना है कि आप मनोवैज्ञानिक रूप से बहक जाएंगे."
- सोशल मीडिया पर ज्यादा जानकारी शेयर करने से बचें
जालसाजों का शिकार होने से बचने के लिए त्रिवेणी सिंह सलाह देते हैं, "सोशल मीडिया पर जिन्हें जानते हैं उन्हें ही जोड़िए. इसके साथ ही सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा जानकारी शेयर करने से बचना चाहिए."
वह आगे कहते हैं, "डिजिटल अरेस्ट जैसी कुछ नहीं होता है. कोई वीडियो कॉल से आपको अरेस्ट नहीं कर सकता. पूरी दुनिया में ऐसा कोई कानून नहीं है. अगर ऐसा कोई कहता है तो 100 फीसदी वह स्कैमर है. अगर आपको वीडियो कॉल करके वॉरंट दिखाता है तो वह भी जालसाज है. पुलिस फिजिकली रूप से आकर नोटिस सर्व करती है. इसके अलावा सीनियर सिटिजन को भी अवेयर करना जरूरी है.