भगवान राम पर कानून, गाय को राष्ट्रीय पशु का दर्जा... कौन हैं जस्टिस शेखर यादव
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर यादव ने बीते सोमवार को विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अल्पसंख्यक समुदाय पर विवादित बयान दिया था. जस्टिस यादव इससे पहले भी अपने कई विवादित बयानों की वजह से सुर्खियों में रह चुके हैं.
इलाहाबाद उच्च हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव के अल्पसंख्यक समुदाय को लेकर दिए गए विवादित बयान ने सोशल मीडिया पर एक बहस छेड़ दी है. हालांकि, उनके बयान पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को संज्ञान लिया है.
बीते सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में दक्षिणपंथी हिंदू संगठन विश्व हिंदू परिषद के कानूनी प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए न्यायमूर्ति शेखर यादव ने कहा था कि यह देश 'बहुसंख्यकों' की इच्छा के अनुसार चलेगा.
शेखर यादव का विवादित बयान
जस्टिस यादव ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था, "मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह हिंदुस्तान है और यह देश बहुसंख्यकों की इच्छा अनुसार चलेगा. यह कानून है, कानून, यकीनन बहुसंख्यकों के मुताबिक काम करता है. इसे परिवार या समाज के संदर्भ में देखें, केवल वही स्वीकार किया जाएगा, जो बहुसंख्यकों के कल्याण और खुशी के लिए फायदेमंद हो."
लगभग 30 मिनट के अपने लंबे भाषण में जस्टिस शेखर यादव ने अयोध्या राम मंदिर में हिंदुओं के बलिदान से लेकर अल्पसंख्यक समुदाय पर कटाक्ष करते हुए हिंदू संस्कृति की विशेषताओं वगैरह पर बात की.
उन्होंने अल्पसंख्यक समुदाय पर टिप्पणी करते हुए कहा, "इस समुदाय के सभी लोग बुरे नहीं हैं, लेकिन जो 'कठमुल्ला' हैं वह देश के लिए हानिकारक है."
विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में जस्टिस यादव के अलावा इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक और अन्य न्यायाधीश दिनेश पाठक भी शामिल हुए थे.
कौन हैं जस्टिस शेखर यादव
जस्टिस शेखर यादव इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज है. साल 2018 में तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली सर्वोच्च न्यायालय की कॉलेजियम ने हाईकोर्ट में उनके प्रमोशन के प्रस्ताव को स्थगित कर दिया था. हालांकि, जस्टिस दीपक मिश्रा के रिटायरमेंट के कुछ महीने बाद तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली कॉलेजियम की सिफारिश पर जस्टिस यादव को एडिशनल जस्टिस बनाया गया था.
दिसंबर 2019 में उन्होंने एडिशनल जज के रूप में शपथ ली और 26 मार्च 2021 को वह हाईकोर्ट के स्थायी जज बने.
गाय की सुरक्षा को बताया था हिंदुओं का मौलिक अधिकार
जस्टिस शेखर यादव इससे पहले भी साल 2021 में अपने एक फैसले को लेकर विवादों में घिर चुके हैं. तब उन्होंने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि गाय भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है और गाय को 'राष्ट्रीय पशु' घोषित करना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा था कि गाय की सुरक्षा हिंदुओं का मौलिक अधिकार घोषित किया जाना चाहिए.
अपने एक और आदेश में जस्टिस यादव ने संसद से भगवान राम के सम्मान में कानून बनाने का आग्रह किया था. इसके अलावा धर्म परिवर्तन से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा था कि अगर बहुसंख्यक समुदाय का कोई व्यक्ति अपमानित होकर अपना धर्म बदल लेता है, तो इससे देश कमजोर हो जाता है.
दिसंबर 2021 में उन्होंने चुनावी रैलियों में होने वाली भीड़ रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चुनाव आयुक्त को यूपी चुनाव टालने का सुझाव दिया था.
बता दें कि जस्टिस शेखर यादव ने अपने करियर की शुरुआत साल 1990 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में सिविल और संवैधानिक मामलों के वकालत से की थी. बाद में शेखर यादव को हाई कोर्ट में राज्य सरकार का अपर शासकीय अधिवक्ता और स्थायी अधिवक्ता भी बनाया गया. इसके साथ ही वह केंद्र सरकार के स्थायी अधिवक्ता और रेलवे के वरिष्ठ अधिवक्ता के पद पर भी काम कर चुके हैं.
इंदिरा जय सिंह, महुआ मोइत्रा समेत कई ने की आलोचना
जस्टिस शेखर यादव के बयान के बाद नेताओं, वकीलों, नागरिक समाज ने जमकर उनकी आलोचना की. अधिकतर लोगों ने उनके बयान को 'असंवैधानिक' और 'न्यायाधीश पद की शपथ का अपमान' बताया.
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जय सिंह ने कहा कि पद पर बैठे एक जज का एक हिंदू संगठन के राजनीतिक एजेंडे पर आयोजित कार्यक्रम में भाग लेना शर्म की बात है.
तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने एक्स पर अपने पोस्ट में लिखा,'वीएचपी के कार्यक्रम में शामिल हुए हाई कोर्ट के मौजूदा जज, कहा- देश हिंदुओं के मुताबिक चलेगा और हम अपने संविधान के 75 वर्ष का जश्न मना रहे हैं! सुप्रीम कोर्ट, माननीय सीजेआई - क्या किसी ने स्वतः संज्ञान लिया.'
अखिल भारतीय अधिवक्ता संघ ने भी एक बयान जारी जस्टिस यादव के बयान को संविधान के मूलभूत ढांचे के विरुद्ध बताया. उन्होंने अपने बयान में कहा, "विश्व हिंदू परिषद के मंच से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज न्यायमूर्ति शेखर यादव का भाषण संविधान, उसके मूल्यों और उसके मूल ढांचे - धर्मनिरपेक्षता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के विरुद्ध है. यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को अंदर से नुकसान पहुंचाने के समान है."
हालांकि, बीजेपी और दक्षिणपंथी संगठनों ने जस्टिस यादव का बचाव भी किया.
उत्तर प्रदेश में बीजेपी विधायक शलभ मणि त्रिपाठी ने जस्टिस यादव के बयान की तारीफ करते हुए कहा, "हमारे यहां जब बच्चा जन्म लेता है तो उसे ईश्वर की तरफ़ ले जाते हैं, वेद मंत्र बताते हैं, उनके यहां बच्चों के सामने बेजुबानों का बेरहमी से वध होता है, सैल्यूट है जस्टिस शेखर यादव, सच बोलने के लिए."
न्यूज वेबसाइट बीबीसी हिंदी से बात करते हुए विश्व हिंदू परिषद विधि प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय सह-संयोजक अभिषेक आत्रेय ने जस्टिस यादव के कार्यक्रम में होने को सही बताया.
उन्होंने कहा, "विश्व हिंदू परिषद विधि प्रकोष्ठ पर न तो बैन लगा है और न ही यह संगठन कोई अवैध काम कर रहा है. फिर जस्टिस शेखर यादव के कार्यक्रम में आने पर सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं. हम वकीलों का एक कानूनी संगठन हैं और वकीलों के कार्यक्रम में जज जाते रहते हैं. इसमें कुछ नया नहीं है."
सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान
जस्टिस यादव के बयान और उसके बाद उसकी आलोचना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में उनके भाषण का विवरण मांगा है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी प्रेस रिलीज में कहा गया, "सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मौजूदा जज जस्टिस शेखर कुमार यादव द्वारा दिए गए भाषण की अखबारों में छपी रिपोर्ट्स पर संज्ञान लिया है. हाईकोर्ट से विवरण और जानकारियां मंगवाई गई और मामला विचाराधीन है."
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने जस्टिस यादव के खिलाफ 'महाभियोग प्रस्ताव' लाने की बात कही है.
कपिल सिब्बल ने अपने बयान में कहा, "मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले पर सख्त कदम उठाने चाहिए और उस शख्स को कुर्सी पर बैठने नहीं देना चाहिए.हम जल्द जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाएंगे और कोई रास्ता बचा नहीं है. जो भी लोग लोग न्यायपालिका की आजादी में भरोसा करते हैं, वे सारे लोग हमारे साथ आएंगे."