राम मनोहर लोहिया: भारतीय राजनीति में लीक से हटकर चलने वाला समाजवादी
गोवा सत्याग्रह और इमरजेंसी आन्दोलन के महान नायक राम मनोहर लोहिया की आज 54वीं पुण्यतिथि है
देश की राजनीति में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और स्वतंत्रता के बाद ऐसे कई नेता हुए जिन्होंने अपने दम पर शासन का रुख बदल दिया. इन्ही में से एक थे राममनोहर लोहिया.
अगर जयप्रकाश नारायण ने देश की राजनीति को स्वतंत्रता के बाद बदला तो वहीं राममनोहर लोहिया ने देश की राजनीति में भावी बदलाव की बयार आज़ादी से पहले ही ला दी थी. अपनी प्रखर देशभक्ति और तेजस्वी समाजवादी विचारों के कारण उन्होंने अपने समर्थकों के साथ ही अपने विरोधियों के मध्य भी अपार सम्मान हासिल किया.
राममनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को फैज़ाबाद में हुआ था. उनके पिताजी हीरालाल पेशे से अध्यापक थे और महात्मा गांधी के अनुयायी थे. वे जब भी गांधी से मिलने जाते तो राम मनोहर को भी अपने साथ ले जाया करते थे. इसी वजह से बहुत बचपन से ही लोहिया एक कुशल राजनीतिज्ञ की दीक्षा पाने लगे थे. लोहिया अपने पिताजी के साथ मात्र 8 वर्ष की उम्र में 1918 में अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार शामिल हुए.
लोहिया ने बनारस से इंटरमीडिएट और 1929 में कोलकता से स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद अपनी उच्च शिक्षा के लिए उस समय लंदन के स्थान पर बर्लिन का चुनाव किया था. 1932 में लोहिया ने जर्मनी से अपनी पीएचडी पूरी की. उनके समाजवादी विचारों की असल जड़ें दरअसल जर्मनी से ही जुड़ी हुई हैं जहां उन्होंने कार्ल मार्क्स (Marx), फ्रेडेरिक हेगेल (Friedrich Hegel) और अन्य समाजवादी विचारकों को खूब पढ़ा.
समाजवाद पर लोहिया के विचार
लोहिया ने ऐसी पाँच प्रकार की असमानताओं को चिह्नित किया जिनसे एक साथ लड़ने की आवश्यकता है.
स्त्री और पुरुष के बीच असमानता
रंग के आधार पर असमानता
जाति आधारित असमानता
कुछ देशों द्वारा दूसरे देशों पर औपनिवेशिक शासन
आर्थिक असमानता
वर्ष 1934 में लोहिया भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (Indian National Congress) के अंदर एक वामपंथी समूह कॉन्ग्रेस-सोशलिस्ट पार्टी (Congress Socialist Party- CSP) में सक्रिय रूप से शामिल हो गए. अनेक उतार चढ़ावों से गुजरते हुए 1962 में वे लोकसभा सदस्य के रूप में भी चुने गये थे.
जाति को लेकर लोहिया के मुखर विचार
लोहिया जात-पात के घोर विरोधी थे. उन्होंने जाति व्यवस्था के विरोध में सुझाव दिया कि "रोटी और बेटी" के माध्यम से इसे समाप्त किया जा सकता है.
वे कहते थे कि सभी जाति के लोग एक साथ मिल-जुलकर खाना खाएं और उच्च वर्ग के लोग निम्न जाति की लड़कियों से अपने बच्चों की शादी करें. इसी प्रकार उन्होंने अपने 'यूनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी' में उच्च पदों के लिए हुए चुनाव के टिकट निम्न जाति के उम्मीदवारों को दिया और उन्हें प्रोत्साहन भी दिया.
वे ये भी चाहते थे कि बेहतर सरकारी स्कूलों की स्थापना हो, जो सभी को शिक्षा के समान अवसर प्रदान कर सकें.
लोहिया का लेखन भी था ज़बर्दस्त
राम मनोहर लोहिया एक ऐसे राजनेता और विचारक थे जो ज़मीन में संघर्ष के साथ साथ उत्कृष्ट और मौलिक लेखन भी करते थे.
उनके कुछ प्रमुख लेखन कार्यों में शामिल हैं: व्हील ऑफ हिस्ट्री (Wheel of History), मार्क्स (Marx), गांधी और समाजवाद (Gandhi and Socialism), भारत विभाजन के दोषी पुरुष (Guilty Men of India's Partition) आदि.
1946-47 के वर्ष लोहिया की जिंदगी के अत्यंत निर्णायक वर्ष रहे. आज़ादी के समय उनके और पंडित जवाहर लाल नेहरू के बीच कई मतभेद पैदा हो गए थे, जिसकी वजह से दोनों के रास्ते अलग हो गए. 12 अक्टूबर 1967 को लोहिया का 57 वर्ष की आयु में देहांत हो गया.