उत्तराखंड आपदा: तबाही की एक दास्ताँ
उत्तराखंड के चमोली ज़िले में फ़रवरी 7 को ग्लेशियर फटने के बाद आये फ़्लैश फ़्लड को रिपोर्ट करने बूम ग्राउंड ज़ीरो पर पंहुचा. यहां पढ़ें हमारी आँखों देखी..
ज़लज़ला आया और आ कर हो गया रुख़्सत मगर वक़्त के रुख़ पर तबाही की इबारत लिख गया...फ़राज़ हामिदी की ये चंद पंक्तियाँ उत्तराखंड में हुए तबाही के मंज़र को बख़ूबी बयाँ करती हैं. हालांकि ये ज़लज़ला तो नहीं था, मगर रविवार - फ़रवरी 7 - के फ़्लैश फ्लड ने अपने पीछे तबाही का एक ऐसा मंज़र छोड़ा है जो आने वाले कई सालों तक पहाड़ों में रहने वाले इन लोगो के ज़ेहन में ज़िंदा रहेगा...उन्हें सताता रहेगा.
"भाग दीपक, भाग ! दीपक के दोस्त ने उससे कहा ... पर जब तक वो अपने चैम्बर से निकल पाता, अचानक बाढ़ आई और वो बह गया ... यह बात दीपक के उस दोस्त ने मुझे बताई जो केवल चंद सेकंड से मौत से बच कर निकल सका," आनंद कोहली, दीपक के बड़े भाई अरुण टमटा के दोस्त ने बूम को बताया. अरुण से हमारी मुलाकात रैणी गांव में फ़रवरी 9 को हुई थी. यही वो गाँव था जहां उफ़नती हुई धौली गंगा एक पावर प्लांट के साथ साथ कई लोगों को फ़रवरी 7 को अपना ग्रास बनाया था.
अरुण अन्य कई लोगो के साथ खड़े थे जो अपने परिवारजन की खोज में रैणी पहुंचे हुए थे. एक अज्ञात भय उनकी आँखों में साफ़ दिख रहा था. यहीं उन्होंने अपने भाई के शव की शिनाख्त की थी...यही वो टूट कर बिखर गए थे.
सुरक्षाकर्मियों ने फ़रवरी 9 को रैणी के घटनास्थल से 5 शव निकाले. इन्हीं शवों में 27 वर्षीय दीपक टमटा का शव भी था. अरुण निढाल हो कर सड़क पर बैठ गए थे. कोई भी सान्तवना एक इंसान के मौत के दुःख को कम नहीं कर सकती. अरुण के दोस्तों की सान्तवनाएँ उसकी सिसकियों में दबती गयी थी और थोड़ी देर बाद वहां सिर्फ़ एक आवाज़ गूँज रही थी...अरुण की सिसकियों की.
ग्राउंड ज़ीरो
इतनी ठिठुरती ठण्ड कि शरीर में सिहरन ख़त्म ना हो. सफ़ेद रुई सा कोहरा चारों तरफ़ पसरा पड़ा है. हर ओर केवल पहाड़. उत्तराखंड के चमोली ज़िले में इन्हीं पहाड़ों की तलहटी में है रैणी गांव. पिछले हफ़्ते 7 फ़रवरी को सुबह करीब 10 बजे नंदा देवी रेंज में एक ग्लेशियर फटा और पहाड़ों से उतरती धौली गंगा नदी में अचानक से सैलाब सा आ गया. ग्लेशियर फटने से आये फ़्लैश फ़्लड ने रैणी गांव से लेकर नीचे तपोवन तक भारी नुकसान पहुंचाया. करीब 200 लोग लापता हैं और अब तक 34 लोगों के शव बरामद किये जा चुके हैं. हालाँकि इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस ने तबाही वाले दिन ही 12 लोगों को तपोवन सुरंग से जीवित निकला था पर उसके बाद से लगातार शव ही मिल रहे हैं.
अगले ही दिन, बूम ग्राउंड ज़ीरो पर था. दो मुख्य जगहें हैं जहाँ बचाव कार्य जारी था (अब भी जारी है) - तपोवन सुरंग और रैणी गांव. रैणी गांव में बना ऋषि गंगा पावर प्लांट तबाही की चपेट में चंद सेकंड में आ गया था . यहां काम कर रहे लोगों को जान बचाने के लिए नदी ने मात्र कुछ पल ही दिए. जहां कुछ दिनों पहले तक एक पूरा पावर प्लांट खड़ा था, अब वह उसके अवशेष शेष हैं. दीपक यहीं पर एक इलेक्ट्रीशियन के रूप में कार्यरत थे.
हम जब चमोली ज़िले के उन क्षेत्रों तक पहुंचे जहां फ़्लैश फ़्लड ने तबाही मचाई थी, नेशनल डिजास्टर रेस्पॉन्स फ़ोर्स, स्टेट डिजास्टर रेस्पॉन्स फ़ोर्स और इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस के साथ साथ कई संस्थाएं ज़ोर शोर से राहत और बचाव कार्य में लगी हुई हैं. माहौल में मातम घुला हुआ था क्योंकि फंसे हुए लोगों के परिवार वालों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही थी.
"पावर प्लांट के मैनेजमेंट से कोई कॉल नहीं आया. किसी ने हमें कॉल नहीं किया... हमनें तो न्यूज़ पर देखा था. अब हमें तो पता है न कि यहां हमारा भाई काम करता है... इसलिए हम तुरंत दौड़े..." मुहम्मद गुलज़ार ने बूम को बताया. गुलज़ार अपने सगे भाई मुहम्मद रिज़वान, 22, अपने चाचा के लड़के मुहम्मद माजिद, 19, और एक पड़ोसी ख़ालिद, 19, की तलाश में रैणी आए थे.
तीनों लड़के पावर प्लांट में पेंटिंग का काम करते थे. रिज़वान का एक 5 साल का बच्चा है और उनकी पत्नी दूसरे बच्चे से गर्भवती हैं.
पहाड़ों के घुमावदार रास्तों पर एन.डी.आर.एफ, आई.टी.बी.पी और एस.डी.आर.एफ की गाड़ियां सरपट भाग रही हैं. आसमान के रस्ते हेलीकाप्टर से खाना गिराया जा रहा है. नदी के उस ओर पूल टूट जाने के बाद फंसे हुए लोगो के लिए ये आशा की एक किरण है. एक काम चलाऊ पूल भी बाँधा जा रहा है जो नदी के दोनों ओर संपर्क स्थापित कर सके. रैणी के आसपास के करीब 13 गांव तक जाने वाले पूल टूट चुके हैं. इन गावों का संपर्क भी बाहरी दुनिया से लगभग टूट गया है. हालांकि कुछ गाँव में रास्ते घूमकर जाने के हैं, पर वे बेहद लम्बे हैं.
रैणी के अलावा तपोवन में भी भारी तबाही हुई थी. यहां एन.टी.पी.सी का ही एक बैराज था जिसने पानी के बहाव को कम करने में अहम् भूमिका निभाई थी. गाँव वालों ने हमें बताया कि अगर ये बैराज ना होता तो तबाही का मंज़र कुछ और ही होता. यहीं तपोवन में ही वो सुरंग भी है जिसमे मलबे के नीचे अब भी कई ज़िंदगियाँ दफ़न हैं. इसी सुरंग के ज़रिये नदी का पानी करीब ढाई किलोमीटर दूर ऊंचाई से पावरप्लांट की टरबाइन पर गिराया जाता है. यहां बचाव कार्य अब भी चालु है. करीब 37 लोगों के फंसे होने की संभावना है. इसी सुरंग के दूसरे छोर पर तबाही वाले दिन आई.टी.बी.पी ने 12 लोगों को जीवित निकाला था.
आशा और निराशा के बीच जो एक बहुत महीन सी रेखा है, वो अब गायब होती जा रही है. परिवारजन शोक में डूबे हुए हैं... सवाल कर रहे हैं, टूट रहे हैं. बचाव कार्य अब भी जारी है.
हम जैसे जैसे चमोली, धौली गंगा और तबाही के इस मंज़र को पीछे छोड़ते जा रहे थे, हमें एहसास होता जा रहा था कि प्रकृति हमेशा मनुष्य पर भारी पड़ती है. रैणी गाँव से कहीं नीचे देवप्रयाग में हमने एक पिट स्टॉप लिया था. यहां अलखनंदा और भागीरथी नदियों का संगम होता है. उस रोज़ हमने जिस अलखनंदा को पहाड़ियों से उतर कर भागीरथी से मिलते देखा था, उसने अपने शरीर पर तबाही की दास्ताँ लिख रखी थी.