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Pride Month 2022: LGBTQAI समुदाय के लिए जून महीना क्यों है इतना ख़ास

भारत में पहली बार प्राइड परेड का आयोजन 2 जुलाई 1999 को कोलकाता में किया गया था.

By - Runjay Kumar |
Published -  2 Jun 2022 4:37 PM IST
  • Pride Month 2022: LGBTQAI समुदाय के लिए जून महीना क्यों है इतना ख़ास

    जून महीना LGBTQAI समुदाय के लिए बेहद ख़ास होता है. इस समुदाय और इनका समर्थन करने वाले लोग इस महीने को प्राइड मंथ (Pride Month) के तौर पर मनाते हैं.

    पूरे महीने के दौरान LGBTQAI समुदाय के बारे में जागरूकता फैलाने के मकसद से दुनिया भर के शहरों में प्राइड परेड निकाला जाता है. साथ ही प्राइड कार्निवल और स्ट्रीट शो जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं. इस दौरान कई शहर LGBTQAI समुदाय के प्रतीक सतरंगी झंडे से ऐसे पटे रहते हैं, जैसे मानो इन्द्रधनुष धरती पर उतर आया हो.

    भले ही आज LGBTQAI समुदाय और इनका समर्थन करने वाले लोग हर्षोल्लास के साथ जून महीने को प्राइड मंथ के तौर पर मनाते हों लेकिन इस महीने को मनाने के पीछे LGBTQAI समुदाय का सालों पुराना संघर्ष है, सामजिक और मानसिक शोषण की लंबी कहानी भी है. तो आइये जानते हैं कि LGBTQAI समुदाय के लिए बेहद ख़ास प्राइड मंथ और प्राइड मार्च के शुरू होने की कहानी क्या है?

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    60 के दशक में अमेरिका के मैनहट्टन शहर में पुलिस जब चाहे समलैंगिक समुदायों वाले बार में घुस जाती थी और वहां मौजूद ग्राहकों एवं बार के स्टाफ़ से मारपीट करती थी. उस दौरान पुलिस कई ग्राहकों को गिरफ़्तार भी कर लेती. 28 जून 1969 को भी पुलिस ने मैनहट्टन के ऐसे ही एक समलैंगिक बार स्टोनवॉल इन (Stonewall Inn) पर छापा मारा. इस दौरान पुलिस ने कई समलैंगिक ग्राहकों को गिरफ़्तार भी कर लिया. लेकिन इस बार LGBTQ समुदाय के लोगों ने पुलिस की इस छापेमारी का जमकर विरोध किया और अपने हकों के लिए जमकर प्रदर्शन किया. इस दौरान हिंसक प्रदर्शन भी हुए.

    इस घटना के एक साल बाद अमेरिका के ही न्यूयॉर्क शहर में 28 जून 1970 को पहला प्राइड मार्च निकाला गया. यह मार्च मैनहट्टन शहर के क्रिस्टोफ़र स्ट्रीट स्थित स्टोनवॉल इन (Stonewall Inn) में हुई घटना के एक साल होने पर निकाला गया था. तब इस मार्च में उस दौरान अमेरिका के प्रमुख समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया था. इसके बाद उसी साल अमेरिका के कई कई अलग शहरों जैसे शिकागो, सैन फ्रांसिस्को और लॉस एंजिल्स में प्राइड मार्च (Pride March) निकाला गया.

    प्राइड मार्च के लिए कोई ख़ास दिन निर्धारित नहीं होने के कारण 1970 के बाद जून महीने को 'प्राइड मंथ' के तौर पर मनाया जाने लगा. पहली बार प्राइड मंथ को आधिकारिक मान्यता तब मिली जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने साल 1999 के जून महीने को समलैंगिक समुदाय के लिए समर्पित किया. बाद में कई दूसरी अमेरिकी सरकारों ने भी जून महीने को प्राइड मंथ के रूप में घोषित किया.

    अमेरिका से शुरू हुआ यह प्राइड मंथ जल्द ही दुनिया के कई देशों में मनाया जाने लगा. आज फ़्रांस, इंग्लैंड, स्विट्जरलैंड, भारत समेत कई देशों में यह महीना मनाया जाता है.

    भारत में पहली बार प्राइड परेड का आयोजन साल 1999 में किया गया था. 2 जुलाई 1999 को कोलकाता में निकाले गए इस प्राइड परेड को कोलकाता रेनबो प्राइड वाक का नाम दिया गया था. इसमें कोलकाता के अलावा मुंबई, बैंगलोर समेत कई शहरों के लोगों ने हिस्सा लिया था. हालांकि आज भारत के कई शहरों में जून के महीने में प्राइड परेड का आयोजन किया जाता है और इसमें काफ़ी संख्या में लोग हिस्सा लेते हैं.

    जानिए LGBTQAI में शामिल वर्गों के बारे में

    आमतौर पर LGBTQAI को लोग LGBTQ ही कहते हैं. लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर को छोटे रूप में LGBT कहा जाता है.

    हालांकि इसमें कई और समुदायों को भी शामिल किया गया है जिसे क्वियर (Queer) का नाम दिया गया है. LGBTQAI में शामिल A का मतलब असेक्सुअल (asexual) से है, अर्थात ऐसे लोग जिनमें यौन रूचि की कमी हो. जबकि I इंटरसेक्स (intersex) समुदाय के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

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