केरल में एक नये प्रकार का मलेरिया मिला है, जानिए क्या है ये
मलेरिया फ़ैलाने वाली पाँच प्रजातियों में से एक प्लास्मोडियम ओवैल केरल में पाई गई है।
केरल के स्वास्थ्य विभाग ने राज्य में एक नए प्रकार के मलेरिया (Malaria) का पता लगाया है। इस जींस का नाम 'प्लास्मोडियम ओवैल' (Plasmodium ovale) है। ये मलेरिया फ़ैलाने वाली पाँच प्रजातियों में से एक है।
केरल (Kerala) के स्वास्थ्य मंत्री (health minister) के. के. शैलेजा (K. K. Shailaja) ने 10 दिसंबर की रात को ट्वीट कर बताया कि 'प्लास्मोडियम ओवैल' जाति सूडान, अफ़्रीका से लौटे एक सैनिक में पाई गई थी। इस प्रजाति का पता तब चला जब उस सैनिक को इलाज के लिए कन्नूर के अस्पताल में भेजा गया। उन्होंने ये भी कहा कि समय पर उपचार और निवारक उपायों से इस बीमारी के प्रसार को रोका जा सकता है।
Plasmodium ovale, a new genus of malaria, has been detected in the State. It was found in a soldier who was being treated at the District hospital in Kannur. The soldier had come from Sudan. The spread of the disease can be avoided with timely treatment and preventive measures.
— Shailaja Teacher (@shailajateacher) December 10, 2020
'प्लास्मोडियम ओवैल' क्या है? क्या है मलेरिया फ़ैलाने वाली ये पाँच प्रजातियां और यह एक दूसरे से कैसे है अलग? इसको संक्षिप्त रिपोर्ट में समझिये।
मलेरिया, प्लास्मोडियम नाम के एक परजीवी (parasite) से होता है। एक संक्रमित मादा एनोफ़िलीस मच्छर (female Anopheles mosquito) इस परजीवी को लोगों में फ़ैलाती है। इस परजीवी की पाँच प्रजातियां हैं। इनमें से प्लास्मोडियम फ़ाल्सीपेरम और प्लास्मोडियम वैवाक्स - इंसानों के लिए सबसे ख़तरनाक मानी जाती हैं।
प्लास्मोडियम फ़ाल्सीपेरम (Plasmodium falciparum): यह प्रजाति अफ़्रीका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया के अधिकतर मलेरिया के मामलों के लिए ज़िम्मेदार है।
प्लास्मोडियम वैवाक्स (Plasmodium vivax): यह प्रजाति अमेरिका और उसके आस पास के देशों के अधिकतर मलेरिया के मामलों के लिए ज़िम्मेदार है।
प्लास्मोडियम ओवैल: ये वो प्रजाति है जिसकी जाँच हाल में केरल में हुई है। मलेरिया फ़ैलाने वाली ये जाति अफ़्रीका में सहारा रेगिस्तान के दक्षिणी भाग में फ़ैली हुई है। पैसिफ़िक महासागर के पश्चिम भाग के कई द्वीपों से भी इस जाति के मिलने की सूचना है। प्लास्मोडियम ओवैल आम तौर पर गंभीर बीमारी का कारण नहीं बनते। लेकिन ये परजीवी कई महीनों तक लीवर में निष्क्रिय रह सकते हैं, जिसकी वजह से मलेरिया के लक्षण महीनों या सालों बाद वापस उभर कर सामने आ सकते हैं।
प्लास्मोडियम मलेरी (Plasmodium malariae) और प्लास्मोडियम नॉलेसी (Plasmodium knowlesi) दो अन्य मलेरिया की जातियाँ हैं।
2019 में, दुनिया भर में मलेरिया के लगभग 2290 लाख मामले दर्ज हुए थे। उसी साल में मलेरिया से लगभग 4,09,000 मौतें हुई थी।
मलेरिया के लक्षण, संक्रमित मच्छर के काटने के 10-15 दिन बाद दिखना शुरू होते हैं। शुरुआती लक्षणों में बुख़ार, सरदर्द और ठंड लगना। यदि 24 घंटों के भीतर इलाज नहीं किया जाता है, तो प्लास्मोडियम फ़ाल्सीपेरम से होने वाला मलेरिया गंभीर हो सकता है जिससे मौत भी हो सकती है।
अगर शुरुआत से मलेरिया का निदान और उपचार हो तो बीमारी फ़ैलने की संभावना कम होती है और इससे होने वाली मौतों को भी नियंत्रित किया जा सकता है।