लोकसभा चुनाव के दौरान ‘फेक न्यूज़’ के 154 मामले – चुनाव आयोग
लोकसभा के जवाब में, चुनाव आयोग द्वारा स्पॉट किए गए फ़र्ज़ी समाचारों के मामलों की संख्या बताई गई है। सबसे ज्यादा मामले ट्विटर से जुड़े थे, उसके बाद फ़ेसबुक और यूट्यूब का स्थान रहा है
कानून मंत्रालय द्वारा 24 जुलाई को लोकसभा में दायर जवाब के अनुसार चुनाव आयोग ने चुनाव के दौरान फ़र्ज़ी और झूठी ख़बरों के 154 मामलों की पहचान की है। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के जवाब में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों - फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब से जुड़ी मामलों की संख्या को भी बताया। 97 मामलों के साथ अधिकतम मामले ट्विटर से जुड़े थे, जबकि 46 मामले फ़ेसबुक और शेष 11 यूट्यूब से जुड़े थे।
यह दक्षिण गोवा के लोकसभा सांसद फ्रांस्सिसको सरदिन्हा के एक प्रश्न का जवाब था। सरदिन्हा ने इस साल अप्रैल और मई में चुनावों के दौरान चुनाव आयोग को मिली फ़र्ज़ी ख़बरों के खिलाफ़ शिकायतों की सूची पर विवरण मांगा था। इनमें से अधिकांश मामले चुनावी वोटिंग मशीनों (ईवीएम) की सुरक्षा, परिवहन और पारदर्शिता के मुद्दों, मतदान के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली अमिट स्याही और मतदाता सूची से जुड़े नकली समाचार पर ही सीमित हैं।
ये सभी मामले संबंधित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (फ़ेसबुक, गूगल या ट्विटर) को सूचित किए गए थे।
चुनाव के दौरान सोशल मीडिया दिशानिर्देश
10 मार्च को लोकसभा के चुनावों की घोषणा करते हुए अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुनाव आयोग ने अपने आदर्श आचार संहिता के तहत सोशल मीडिया को शामिल किया था। उपायों में सोशल मीडिया हैंडल को पूर्व-प्रमाणित करना और अन्य उपायों के बीच फ़ेसबुक और गूगल द्वारा राजनीतिक सत्यापन प्रक्रियाएं शामिल थीं।
चुनाव से पहले सोशल मीडिया को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए ये दिशा-निर्देश लागू किए गए थे।
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उत्तर में डेटा क्या कहता है?
फ़ेसबुक
चुनाव आयोग द्वारा फ़र्ज़ी और झूठी खबरों के कुल 46 मामले सामने आए हैं, जिनमें से सभी फ़ेसबुक पर प्रसारित किए गए थे। फ़ेसबुक या किसी अन्य प्लेटफार्मों से संबंधित देखे गए मामलों के लिए कोई और ब्योरा नहीं दिया गया है।
ट्विटर
चुनाव आयोग द्वारा फ़र्ज़ी और झूठी खबरों के कुल 97 मामले सामने आए हैं, जिनमें से सभी को ट्विटर पर आगे बढ़ाया गया है।
एक विशिष्ट समुदाय को गुमराह करने के इरादे से दो मामलों के संबंध में चुनाव आयोग द्वारा एक प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज की गई थी। क्या कार्रवाई हुई थी या किस समुदाय को लक्षित किया गया, इस पर कोई विवरण नहीं दिया गया है। अधिकांश मामले ईवीएम के बारे में ग़लत सूचनाओं से संबंधित थे, जो फ़ेसबुक को रिपोर्ट किए गए ट्रेंड के समान है।
यूट्यूब
चुनाव आयोग द्वारा यूट्यूब पर 11 मामलों को मान्यता दी गई थी; ऐसे मामले जो गूगल पर बहुत तेजी से बढे थे | बूम सहित फ़ैक्ट-चेकर्स ने इस संबंध में कुछ स्टोरीज को ख़ारिज किया था, ख़ासकर ईवीएम से संबंधित।
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डीप फेक
फ्रांस्सिसको सरदिन्हा ने डीपफेक पर भी सरकार से सवाल किया| डीप फेक ऐसे वीडियो या विसुअल मटेरियल होता है जो अत्यधिक विश्वसनीय वीडियो होते हैं जिन्हें उन्नत उपकरणों के माध्यम से ऑडिबली या वीजुएली बदला जाता है। उत्तर में कहा गया है कि चुनाव आयोग ने ध्यान में एक भी डीपफेक का मामला नहीं लाया गया है।
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लोकसभा के उत्तर को यहां पढ़ा जा सकता है।