मुंबई में 26 नवंबर 2008 को कई जगहों पर लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने हमले को अंजाम दिया था.
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, ओबेरॉय ट्राइडेंट और ताज पैलेस में हुए इस हमले में 166 लोगों की जान गई थी.
ताज होटल पर हमले की खबर मिलते ही रतन टाटा वहां पहुंचे. हालांकि उन्हें अंदर नहीं जाने दिया गया.
रतन टाटा होटल के कोलाबा छोर पर ही तीन दिन तक खड़े रहे जब तक कि ऑपरेशन खत्म नहीं हो गया.
बाद में टाटा ने होटल में हमले में मारे गए और घायल कर्मचारियों के परिवारों का जिम्मा उठाया.
ताज पब्लिक सर्विस वेलफेयर ट्रस्ट का गठन किया गया और मृतकों के परिजनों को आजीवन वेतन सुनिश्चित की.
हमले के एक साल बाद होटल ताज में मारे गए लोगों और कर्मचारियों की याद में स्मारक बनवाया गया.