11 फ़रवरी विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं और लड़कियों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस क्षेत्र में लैंगिक समानता को बढ़ावा देते हुए महिलाओं और लड़कियों द्वारा किये गए योगदान को एक पहचान देना मकसद है इस दिवस का. आइये, आपको आज मिलवाते हैं ऐसी ही कुछ महिलाओं से जिन्होंने गणित और विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व सफ़लता हासिल की है.

डॉ. जेन गुडॉल
26 साल की उम्र में चिंपांज़ियों की दुनिया जानने और समझने के लिए जेन गुडॉल इंग्लैंड से (अब के) तंज़ानिया गईं थीं. उन्होंने चिंपांज़ियों को सिर्फ़ एक प्रजाति ना समझकर भावनाएँ व्यक्त करने वाले और रिश्ते बनाने वाले व्यक्तियों के रूप में समझा है. अपने लगभग 60 साल के काम के ज़रिए डॉ. गुडॉल ने चिंपांज़ियों के संरक्षण की ज़रूरत पर प्रकाश डाला है. उनकी 1960 की ये खोज कि चिंपांज़ी उपकरण बनाते हैं और उपयोग करते हैं, सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक मानी जाती है.
डॉ इंदिरा हिंदुजा
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डॉ. इंदिरा हिंदुजा ने भारत में 'इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन' स्थापित करने में बड़ा योगदान दिया है. 'इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन' एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शरीर के बाहर एक पुरुष के शुक्राणु के साथ एक महिला के अंडाणु को मिलाकर बच्चा पैदा किया जाता है. इससे 6 अगस्त 1986 को भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बच्चे का जन्म हुआ.
ग्लैडीज़ वेस्ट
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ग्लैडीज़ वेस्ट को 1956 में अमेरिकी नौसेना हथियार प्रयोगशाला (U.S. Naval Weapons Laboratory) में एक गणितज्ञ के रूप में काम पर रखा गया था. वेस्ट ने पृथ्वी के आकार की गणितीय मॉडलिंग की थी. उनके इस मॉडल ने GPS तकनीक की नींव रखी थी.
एलिस बॉल
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एलिस बॉल एक अफ़्रीकी-अमेरिकी रसायनज्ञ थे जिन्होंने कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों के लिए पहले सफ़ल उपचार का निर्माण किया था. वो 1915 में रसायन विज्ञान में मास्टर्स डिग्री हासिल करने वाली पहली महिला थीं. वो 23 साल की ही उम्र में हवई विश्वविद्यालय में रसायन विज्ञान प्रशिक्षक बन गईं थीं. लेकिन प्रयोगशाला में दुर्घटना की वजह से बॉल का निधन 24 साल की अल्पायु में हो गया.
मैरी क्यूरी
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मैरी क्यूरी रेडियम की शोध के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं. अपने पति पिएर्रे के साथ उन्होंने तत्वों को रेडिओएक्टिविटी के लिए जाँच किया और दो अज्ञात तत्वों की शोध की - रेडियम और पोलोनियम. अपने अनुसंधान के दौरान मैरी ने 1910 में रेडियम का उत्पादन शुद्ध धातु के रूप में किया. मैरी और पिएर्रे को 1903 में भौतिकी में नोबल पुरस्कार से नवाज़ा गया था. 1911 में मैरी को रसायन शास्त्र में दूसरा नोबल मिला.
कमला सोहोनी
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कमला सोहोनी विज्ञान के क्षेत्र में Ph.D हासिल करने वाली भारत की पहली महिला हैं. शुरुआत में उन्हें इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ सायंस (IISc) में रिसर्च फ़ेलोशिप में दाखिला देने से सिर्फ़ इसलिए मना कर दिया गया था क्यूंकि वो एक महिला थी. हालांकि बाद में उन्होंने वहीँ से अपना शोध पूरा किया. उनके कई प्रसिद्ध कार्यों में से एक है 'नीरा' - मीठे ताड़ अमृत, फलियां और चावल के आटे से बनाया गया पेय. कमला ने पाया कि नीरा में विटामिन और आयरन की मात्रा अधिक होती है; और ये कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए एक सस्ता आहार अनुपूरक है.