क्रांति और विद्रोह के कवि अवतार सिंह संधू उर्फ़ ‘पाश’ की आज ही के दिन यानी 23 मार्च 1988 को खालिस्तानी उग्रवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.
पाश का जन्म पंजाब के जालंधर ज़िले के तलवंडी सलेम गांव में 9 सितंबर 1950 को हुआ था.
पाश अपनी कविताओं से सामाजिक-राजनीतिक विमर्श की चेतना को जनता के बीच रखते थे. उनके हर एक शब्द सत्ता और व्यवस्था को चुनौती देते थे.
पाश की उम्र जब 20 साल थी तब उन पर नक्सलवादी गतिविधियों के आरोप लगे थे और उन्हें जेल में डाल दिया गया था.
पाश भगत सिंह को अपना आदर्श मानते थे. संयोग से उनकी शहादत का दिन उनके आदर्श भगत सिंह की शहादत के दिन ही है. दोनों सितंबर के महीने में ही पैदा भी हुए थे.
भगत सिंह के बारे में पाश लिखते हैं- “भगत सिंह ने पहली बार पंजाब को जंगलीपन, पहलवानी व जहालत से बुद्धि‍वाद की ओर मोड़ा था जिस दिन फांसी दी गई उसकी कोठरी में लेनिन की किताब मिली जिसका एक पन्‍ना मोड़ा गया था पंजाब की जवानी को उसके आखिरी दिन से इस मुड़े पन्‍ने से बढ़ना है आगे चलना है आगे.
पाश भारत को आम मेहनतकश और उनके सपनों का देश मानते थे. वो बेहतर भविष्य के सपने को जीवित रखने के हिमायती थे. इसलिए वे सपने के मर जाने को इस दुनिया के लिए सबसे ख़तरनाक मानते थे- "सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना न होना तड़प का सब सहन कर जाना घर से निकलना काम पर और काम से लौटकर घर आना सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना"
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